Category: पहला कदम

निंदा

नीचगोत्र-बंध का हेतु निंदा बताया (तत्त्वार्थ सूत्र जी), जबकि नरक में उच्चगोत्र-बंध भी होता है। तो क्या हम नारकियों से भी गये बीते हैं ?

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मिथ्यादृष्टि का काल

सम्यग्दृष्टि सागर के बराबर संसार को चुल्लू भर लेता है। मिथ्यादृष्टि चुल्लू भर संसार को सागर बना लेता है। चिंतन

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विनय-भावना

दर्शन विशुद्धि के बाद विनय इसलिये रखी क्योंकि अब वह गुणों (सम्यग्दर्शन आदि) को जान गया/ उन पर श्रद्धा आ गयी है। श्रद्धावान ही सच्ची

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कर्मों की कार्यविधि

हमको अच्छा/ बुरा, नाम/ गोत्र/ वेदनीय कर्मों के उदय से मिलता है। कामों में अवरोध अंतराय के उदय से। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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ज्ञानोपयोग

1. प्रारम्भिक अवस्था… इष्ट/ अनिष्ट को जानना 2. मध्यम… इष्ट को ग्रहण/ अनिष्ट को छोड़ना 3. अंतिम अवस्था… तटस्थ रहना/ बाहरी ज्ञेय से हट कर

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नय / एकांत

नय…. एक दृष्टि/अपेक्षा/कथंचित, एकांत… ये दृष्टि ही सही। चिंतन

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नय

चूना सफेद, हल्दी पीली… निश्चय, दोनों मिलकर लाल…… व्यवहार। “नय” विवादों को सुलझा देता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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सम्यग्दर्शन

सम्यग्दर्शन तलवार की धार जैसा होता है। तलवार के टुकडे हो जाएं, धार वैसी की वैसी बनी रहती है।

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क्षेत्र / स्पर्शन

क्षेत्र = वर्तमान में जीव के गमन की सीमा। स्पर्शन = अतीत में जीव के गमन की सीमा। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड- गाथा 471)

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नौ संख्या

मुनिराजों के गुणस्थान 9 होते हैं (6 से 14)। 9 संख्या की पवित्रता/ महत्व का यह भी कारण हुआ। चिंतन

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मंगल आशीष

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