Category: पहला कदम
उत्तम तप-धर्म
अग्नि(तप) समाप्त तो पंचम काल समाप्त। जब तक गर्माहट, तब तक जीवन। गर्म पानी की भाप उर्धगमन, ठंडा बर्फ हथियार बन सकता है। पानी(स.दर्शन) तपे
उत्तम संयम-धर्म
संयम से अतीत का प्रक्षालन, भविष्य में पुरानी गलतियाँ ना दोहराने का संकल्प तथा वर्तमान की शुद्धि होती है। संयम सहित ज्ञान, आम का पेड़
उत्तम सत्य-धर्म
भगवान के अनेक नामों में बहुत से नाम सत्य रूप अवस्थित हैं। क्योंकि उसके सत्य वचन योग होता है (असत्य योग नहीं होता)। सत् की
उत्तम शौच-धर्म
आचार्य श्री समंतभद्र स्वामी ने अरहंत भगवान को भी शौच-धर्म युक्त नहीं कहा, सिर्फ सिद्ध भगवान की शौच-धर्म पूर्णता मानी है। मुनि श्री मंगल सागर
उत्तम आर्जव धर्म
मायाचारी ज्ञानावरण, दर्शनावरण कर्मबंध में कारण है क्योंकि तत्त्वार्थसूत्र जी में निह्नव, मात्सर्य निमित्त कहे हैं। मन,वचन,काय की स्थिरता केवलज्ञान प्राप्ति में हेतु है। तो
उत्तम मार्दव धर्म
निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी ने लिखा है कि बड़े/ पुराने मुनि अपने से छोटे मुनियों को नमोस्तु करने पर आशीर्वाद नहीं, प्रतिनमोस्तु करते
पर्युषण ….उत्तम क्षमा धर्म
पर्व… 1) ये काल अधिकतम जीवों का उत्पत्ति स्थान। वर्तमान वातावरण(समशीतोष्ण) में उत्पत्ति अधिकतम होती है। 2) पर्युषण-पर्व में चार कषायों के गाँठों को ढ़ीला
पर्याय / परिणमन
परिणति का नाम पर्याय है। शुद्ध द्रव्य शुद्ध रूप में उत्पात, व्यय, धौव्य रूप परिणमन करते हैं। इसलिये उन पर्यायों को अर्थ पर्याय कहते हैं।
आत्मा
आत्मा की पहचान प्राणों से होती है इसलिए व्यवहार नय से उसे “प्राणी” कहा। जिस अवस्था में १० प्राणों में से कोई प्राण धारण नहीं
अनुराग
धर्म में तो अनुराग को बुरा कहा फिर धर्मानुराग को अच्छा क्यों कहा? ताकि संसानुराग कम होते-होते वीतरागी बन सकें। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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