Category: पहला कदम
ऊर्जा ग्रहण
चारौं परमेष्ठियों की ऊर्जा महसूस करते हैं, सिद्ध भगवान की कैसे ग्रहण करें ? ऊर्जा किसी न किसी माध्यम से मिलती है जैसे बिजली, बल्बादि
मोक्षमार्ग
हमारी मोक्षमार्ग में गति क्यों नहीं ? बंदर को 10 फीट के खम्बे पर चढ़ना है। 1-2 फीट चढ़ता है, 1-2 फीट सरक जाता है।
श्रुत को समझना/समझाना
अनभिलप्य = जो कहने योग्य नहीं। उसका अनंतवां भाग कहने योग्य = प्रज्ञापनीय। उसका अनंतवां भाग श्रुत में लिपिबद्ध क्योंकि शब्दों की सीमा बहुत छोटी
पुदगल भेद
विज्ञानानुसार पुदगल के 3 भेद → ठोस, तरल, गैस। जैन दर्शनानुसार 6 भेद हैं → स्थूल-स्थूल → टूटने पर, दुबारा न जुड़े – जैसे लकड़ी,
सल्लेखना
1982 में ब्र. राजाराम जी नैनागिर में सल्लेखना कर रहे थे। जल पर आ गये थे। एक दिन उनकी नज़र सेब पर जा रही थी।
गुणों की भावना
तीर्थंकर बनने की भावना से ज्यादा उनके गुणों की भावना/ चिंतवन से विशुद्धि तथा तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो सकता है। ज्ञान से ज्यादा ज्ञान
जैन दर्शन
जैन दर्शन प्रजातांत्रिक है; हर आत्मा शिखर तक जा सकता है/ गये हैं/ जा रहे हैं/ जाएँगे। अन्य दर्शनों में एक ही आत्मा/ परमात्मा था/
आहार
कर्म वर्गणाएं/ आहार जीव के लिये हर जगह उपलब्ध हैं, ग्रहण भी करता रहता है (हवा/ पानी), उससे शक्ति भी आती है। कवलाहार तो अतिरिक्त
शुभ-अशुभ
शुभ स्थान पाने के लिये बहुत मेहनत करना होता है जैसे सर्वोत्तम स्थान पाने 7 राजू चढ़कर सिद्धशिला मिलती है। अशुभ के लिए कोई स्थान
मरण के बाद
मरण के बाद शव के न तो पैर छूने चाहिए, ना ही परिक्रमा देनी चाहिए और सुहागन का श्रृंगार भी नहीं करना चाहिए। निर्यापक मुनि
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