Category: पहला कदम

संयम

ज्ञान को क्षायिक तथा सम्यग्दर्शन को परम-अवगाढ़, संयम ही बनाता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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जैन दर्शन

नियत को अनियत बनाना जैन दर्शन है। इसीलिये श्रमण न नियत विहार/ न  नियत आहार करते हैं। मुनि श्री सुधासागर जी

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गुप्ति

गुप्ति = जिसके बल से आत्मा का गोपन (रक्षा) होता है। आगम की भाषा में जिसे गुप्ति कहते हैं, अध्यात्म में ध्यान। आचार्य श्री विद्यासागर

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श्रावक-धर्म

दान, पूजा, शील व उपवास ये 4 धर्म श्रावक के बताये हैं। शील का अर्थ स्वभाव/ ब्रह्मचर्य होता है। 5 इन्द्रियों के विषयों से विरति

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ध्यान

ध्यान के लिये – 1. शुभ Object का ज्ञान। 2. आत्मा पर श्रद्धान। 3. प्रत्याहार (अन्य Object पर से ध्यान हटाना)। 4. धारणा – शुद्ध

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कर्म-बंध

    श्री समयसार जी के अनुसार “प्रज्ञापराध” (उपयोग + अपराध) से ही (पाप) कर्म बंध होते हैं। जैसे हीरा देखा, हड़पने के भाव आये,

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जैन दर्शन

जैन दर्शन तो सम्प्रदाय है, व्यक्त्तिगत विचार/ चिंतन नहीं, महावीर/  आदिनाथ भगवान का विचार नहीं। इसलिये आनादि से अनंत तक एक ही सिद्धांत रहता है।

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परिषह-जय/तप

बाइस परिषह पूरी तरह सहने से “जय”। “तप”…प्रवीण होने के लिये, उत्तर-गुण। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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विसंवाद

विसंवाद साधर्मी से इसलिये कहा क्योंकि विधर्मी से सम्पर्क ही नहीं/ कम होता है। निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

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मन

असंयत अवस्था में मन के अनुसार ही चले। संयत अवस्था में तो समझाओ कि अब वह तुम्हारे अनुसार चले। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंगल आशीष

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