Category: पहला कदम
धर्म/शुक्ल ध्यान
समाधि में क्षपक शरीरगत मोह का धर्म-ध्यान से क्षय करता है। क्षपक-श्रेणी में मोह का क्षय शुक्ल-ध्यान से। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
गुरु
गुरु में देव, गुरु व शास्त्र तीनों समाहित हैं – गुरु की वाणी – जिनवाणी ; जिनमुद्रा देखते ही मोक्षमार्ग की अनुभूति। आचार्य श्री विद्यासागर
अध्यात्म शास्त्र
द्रव्य-संग्रह अध्यात्म शास्त्र है, अध्यात्म शास्त्र का अर्थ – संसार के सारे पदार्थ गौण हो जायें और केवल उपादेय/प्राप्तव्य है – शुद्धत्व सिद्ध परमेष्ठी हमारे
पाप/पुण्य बंध
पाप की निर्जरा के साथ पुण्य-बंध तो होगा ही। पुण्यानुबंधीपुण्य पाप की निर्जरा करता है। आगम में 10वें गुणस्थान तक किसी भी पुण्यप्रकृति की निर्जरा
अंजन को ज्ञान
अंजन चोर को पूर्व का ज्ञान ! कैसे घटित करें ? जब तक वह चोर था, उसे पूर्व-विद नहीं कहेंगे। संयम/तप करने पर हो गया
श्रुत-ज्ञान
(तत्त्वार्थसूत्र – अध्याय 9/सूत्र 37) पूर्वविद, 9 से 14 पूर्व के ज्ञानी को कहते हैं (द्रव्य-श्रुत का ज्ञान), क्षयोपशम से भाव-श्रुत होता है; ये ही
धर्म्य
धर्म = पूजा पाठादि। धर्म्य = आत्मा में धर्म/ धर्ममय आत्मा। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
शीलव्रतेष्वनतिचार
शील * = स्वभाव में रहना/ ब्रम्हचर्य/ महाव्रत। ष्व = बहुवचन। अनतिचार = अतिक्रम, वृतिक्रम, अतिचार, अनाचार रहित। प्रकाश छाबड़ा * अहिंसादि व्रतों की रक्षा
सुख
परमयोगियों के रागादि से रहित होने के कारण, उनका सुख आत्मिक सुख/ स्वसंवेदन माना जाता है। वे सिद्धों की अपेक्षा से तो समानता नहीं रखते
धन्य-तेरस
जब भगवान की तीर्थंकर-प्रकृति की उदीरणा होना बंद हो जाती है तब भगवान योगनिरोध करने के लिए समवसरण छोड़ देते हैं। उस समय देवता रत्नों
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