Category: पहला कदम
आत्मोत्थान
जैसे कपड़े चमकाने के लिये पहले धोते हैं, नील देते हैं, फिर प्रेस करते हैं। ऐसे ही आत्मा को चमकाने के लिये पहले आरम्भ-परिग्रह को
शुद्ध ज्ञान/दर्शन
शुद्ध ज्ञान/दर्शन, शुद्ध पदार्थ को विषय बनाता है। तो क्या अशुद्ध पदार्थ को विषय नहीं बनाते ? पदार्थों को ज्यों का त्यों जानना भी शुद्ध
ध्यान
ध्यान-साधना के लिये, आसन-साधना आवश्यक है और आसन-साधना के लिये अशन (ऊनोदर)-साधना होनी ही चाहिये। आचार्य श्री विद्यासागर जी
अतदाकार स्थापना
अतदाकार स्थापना जैन दर्शन में इसलिये नहीं क्योंकि इससे मिथ्यात्व की पुष्टि हो सकती है, क्योंकि किसी भी रूप की पूजा अपने-अपने मन से शुरु
वीर्याचार
चारों प्रकार के आचारों की सुरक्षा के लिये वीर्याचार आवश्यक है। रूचि पैदा करने से भी वीर्यान्तराय कर्म का क्षयोपशम होता रहता है। आचार्य श्री
अर्थ
शब्दों के माध्यम से मन जितना-जितना अर्थ की ओर जाता है, उसकी एकाग्रता उतनी-उतनी बढ़ती जाती है। शब्दों को फोड़ने का प्रयास करो, उसके माध्यम
ॐकार ध्वनि
ॐ द्वादशांग (जिनवाणी) का भी प्रतीक है। इसलिये कहा जाता है – ॐकाराय नमो नम: मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मोक्ष की डगर
मोक्ष की डगर सकरी/ पथरीली/ कठिन चढ़ाई वाली, इस पर यदि ऐसे ज्ञान की पोटली लेकर चलोगे जो इधर-उधर हिल रही है तो गिरने की
भू-शयन
भू मतलब मारबल/Tiles नहीं, इस पर सो कर तो एक मुनिराज को प्राणलेवा बीमार/समाधि हो गयी। मिट्टी वाली ज़मीन/लिपी हुई को भू कहते हैं। काष्ठ/
छह द्रव्य
प्रकृति के छह बेटे, सबसे बड़ा जीव। चक्रवर्ती तो एक ही होता है, भरत। चार समताभावी/निष्क्रिय निमित्त – ९९ भाइयों जैसे। पुद्गल रूपी बाहुबली को
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