Category: पहला कदम

भावनायें

पहले विनयशील बनाया, फिर अशुचि/अशरण भावना भाने को कहा। मोक्ष भावना नहीं तत्त्व है (भावों में आ भी नहीं सकता है)। संसार-भावना दी, यह अनुभव

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पुरुषार्थ / कर्मोदय

अनादि से रागद्वेष करते रहने से कर्मों में इतनी क्षमता आ गयी है कि आप रागद्वेष ना करना भी चाहें तो भी (तीव्र) कर्मोदय में

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विषय-भोग

केवल श्रद्धान मात्र से विषयों के प्रति झुकाव रुक नहीं जाता। सौधर्म इन्द्र/ भरत-चक्रवर्ती क्षायिक सम्यग्दृष्टि हैं/ थे पर एक सैकिंड को भी विषय-भोग छोड़

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गति / सुरक्षा

वाहन को गति और सुरक्षा ब्रेक से होती है। जीवन की गाड़ी के लिये संयम से।

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जघन्य अवगाहना

चौथे काल में जघन्य अवगाहना 7 हाथ या साढ़े तीन हाथ ? जघन्य अवगाहना तो 7 हाथ ही पर साढ़े तीन हाथ 8 वर्ष की

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गर्म पानी

पेट सम्मूर्च्छन जीवों की उत्पत्ति का स्थान है, पेट को इन दोषों से रहित रखने के लिये व्रतियों को गर्म पानी पीने को कहा है।

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मोक्षमार्ग की साधना

मोक्षमार्ग की साधना 4 प्रत्ययों से पूर्ण होती है – 1. अज्ञान निवृत्ति 2. पाप-विषय त्याग 3. आदान (व्रत ग्रहण) 4. उपेक्षा (विकल्पों की शून्यता)

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दिव्यध्वनि

आगमानुसार दिव्यध्वनि मुख से ही खिरती है, सर्वांग से नहीं जैसा पूजादि में लिखा है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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धर्म-ध्यान

अच्छे विचारों से एकाग्रता आती है। एकाग्रता होने पर धर्म-ध्यान होगा। अच्छे विचारों के लिये 4 विषय दिये हैं – 1. आज्ञा-विचय 2. अपाय-विचय 3.

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पात्रता

देशना लब्धि (जिनवाणी सुनने) की पात्रता उसी में जो भक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक रखता है। सम्यग्दर्शन की भूमिका/योग्यता – जो व्यसन मुक्त हो। आचार्य श्री विद्यासागर

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मंगल आशीष

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