Category: पहला कदम
धन्य-तेरस
जब भगवान की तीर्थंकर-प्रकृति की उदीरणा होना बंद हो जाती है तब भगवान योगनिरोध करने के लिए समवसरण छोड़ देते हैं। उस समय देवता रत्नों
दर्शन/चारित्र विनय
दर्शन यानि सम्यग्दर्शन। अपने दर्शन की विनय = सम्यग्दर्शन को जानने की जिज्ञासा, 8अंगादि को जानने की तथा सम्यग्दर्शन पाने के
विनय तप
जो आत्मायें अपने गुणों को प्रकट करने की साधना में लगी हैं, उनके विनय प्रकट होती है। चारित्र के पुट के साथ सम्यग्ज्ञान की पूज्यता
पुण्य-फल
“पुण्य फला अरहंता” प्रथमानुयोग में नहीं, प्रवचन-सार में लिखा है। अंतर्मुहूर्त तक यदि साता का बंध बिना प्रमाद के हो जाय तो केवलज्ञान हो जायेगा।
अनायतन
सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र जिसका आवास/ आश्रय/ आधार है, उसमें जो निमित्त होता है, वह आयतन है। उससे विपक्ष – अनायतन। वीतराग सम्यग्दृष्टि के लिये थोड़ा
चारित्र
1. चरण = चलना। 2. चारित्र = आत्मा में चर्या करने रूप प्रवृत्ति। 3. सामायिक-चारित्र – प्रथम चारित्र, समभाव रखना। इसके बिना आगे के चारित्र
निर्णय / व्यवहार / निश्चय
साध्य का लक्ष्य बनाना निर्णय है। व्यवहार – जिसके माध्यम से साध्य सिद्ध होता है। साध्य की उपलब्धि – निश्चय। निर्णय को ही निश्चय मानना
बाह्यक्रिया
मूलगुण तो इंद्रियजय हैं, न कि मनोविजय। (पहले बाह्यक्रिया/ मूलगुण को निष्ठा से पालो, उसका फल मनोविजय होगा) आचार्य श्री विद्यासागर जी
Dependency
1. Dependent – जैसे हम लोग दूसरों के पेड़ों से फल खाते हैं। 2. Interdependent – मुनिराज – जगह जगह जाकर फलदार (धर्म के) पेड़
पाप क्रियाओं से बचाव
जब तक पाप क्रियाओं से बच रहे हैं, तब तक सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र काम कर रहे हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी
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