Category: पहला कदम
जीव
अनंतकायिक जीव में – प्रत्येक जीव कम, निगोदिया ज्यादा होते हैं। प्रत्येक-शरीर जीव में – निगोदिया कम। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मृदुता / संयम
मृदुता के बिना ज्ञान की पात्रता नहीं आती। इन्द्रिय विषयों और कषायों से सम्बंध नहीं रखने से ऋजुता स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। संयम, ज्ञान
धरणेन्द्र
धरणेन्द्र, कमठ के जीव वाले देव से छोटे/कम शक्त्तिशाली थे सो उसे भगा नहीं सकते थे। इसलिये पार्श्वनाथ भगवान के ऊपर फन फैला उनकी रक्षा
द्वीप / समुद्र
अढ़ाई द्वीप/मनुष्य लोक सबसे महत्त्वपूर्ण है। आगे के असंख्यात द्वीपों/समुद्रों में तो मनुष्य ही नहीं होते, वे तो मनुष्य लोक को Balance करने के लिये
मूलाचार
पंडित जी – मूलाचार की मूल पांडुलिपि जर्मनी में है, कितना बड़ा दुर्भाग्य है ! आचार्य श्री – जर्मनी में द्रव्यलिपि हो सकती है, पर
निदान
निदान शत्रुता से – प्रतिनारायण को, वैभव देखकर लालसा से – नारायण को। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
असंख्यातवां भाग
असंख्यात का असंख्यातवां भाग भी असंख्यात ही होता है। जैसे अनंत का अनंत और संख्यात का संख्यातवां भाग संख्यात। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
वीर्याचार
चारौं प्रकार के आचारों की सुरक्षा के लिये वीर्याचार आवश्यक है। ज्ञान और दर्शन में तो प्रायः अधिक शक्ति ख़र्च करते हैं पर चारित्र एवं
संस्कार
भगवान के संस्कारों की रक्षा के लिये देवियाँ भगवान की माँ के गर्भ को ६ माह पहले से शोधन करती हैं। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सक्रियता और पुद्गल
ज्यादा इंद्रियों तथा मन वालों में पुद्गल ज्यादा होते हैं तथा इनकी सक्रियता भी ज्यादा होती है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी तत्त्वार्थ सूत्र में भी
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