Category: पहला कदम
उपलब्धि / सुरक्षा
भक्त्तामर आदि मंत्रों/स्तोत्रों से उपलब्धि नहीं, सुरक्षा मिलती है, ये तो Commando हैं। ये मंत्रादि तथा गुरु/भगवान कमाई में सहायक नहीं, कमाई में तो हम
आस्था एक पर
जिस दुकान से माल लेते आये हो, हमेशा उस पर ही भरोसा रखें। यदि उनकी दुकान पर आपका माल नहीं होगा तो दूसरे की दुकान
शांति
रूपक – एक बार भगवान ने सब कुछ बाँटा, बस एक चीज अपने पैरों के नीचे दबा ली, वह थी “शांति” । इसलिये “शांति”, शांतिनाथ
गुप्ति
1. अप्रिय/व्यंग्यवाणी/असत्य बोलने से रोकती है। 2. प्रवृत्ति में भाषा-समिति के साथ/छन्ना लगाकर/हित, मित, प्रिय बोल। 3. निवृत्ति – बोलना ही नहीं। मुनि श्री प्रणम्यसागर
अर्हद्भक्ति
अर्हद्भक्ति यानि अरहंत-भक्ति। स्तुतियाँ करना/रचना करना, अर्हद्भक्ति है। रत्नकरंड श्रावकाचार आदि कुछ ग्रंथों को छोड़ कर बाकी सब भक्ति-परक ग्रंथों की ही रचना की है,
हिंसा / अहिंसा
ऋषभदेव भगवान ने तलवार चलाना सिखाया, हिंसकों से रक्षा हेतु । महावीर भगवान ने तलवार छुड़वायी, अहिंसकों को और अधिक अहिंसक बनाने हेतु (मुनियों की
मन
मन पौद्गलिक है। इसलिये मन पर पौद्गलिक बेहोशी की दवा/नशीले पदार्थ/शब्दों – अच्छे, बुरे/सपनों का प्रभाव होता है। मनोवर्गणायें कमज़ोर होने पर गुरुवचन/मनोवैज्ञानिकों के Motivation,
सजीव-दर्शन
आज जिन-दर्शन करते समय भगवान का श्वासोच्छ्वास नज़र नहीं आ रहा था। फिर समझ में आया कि श्वासोच्छ्वास नज़र तो समवशरण में भी नहीं आता
अरति
दूसरे में (मन, वचन, काय से) अरति (Disliking) पैदा करना, ये विरति/विरक्त्ति नहीं है । अरति में लेने के भाव तो होते हैं, पर ऐसे
स्वाध्याय
“स्वस्य अध्याय: स्वाध्याय:” जहाँ अपना निजी आत्मतत्व पुष्ट होता है/ विकसित होता है, ऐसे शास्त्र पठन का नाम “स्वाध्याय” है। स्वाध्याय का अर्थ मात्र लिखना-पढ़ना
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