Category: पहला कदम
सिद्धांत
जिस चीज़ की जितनी उपेक्षा, वह उतनी दूर रहेगी (कम सतायेगी) जैसे महमान/कर्म। मुनि आस्रवों पर 108 ताले, 3 गुप्ति के दरवाजे तथा इंद्रिय निरोध
सक्रियता
सक्रियता जीव (संसारी) व पुद्गल में ही होती है, अन्य द्रव्यों में नहीं। संसारी जीव में पुद्गल (कर्म) के माध्यम से आती है; जो जीव
भगवान का स्वागत
ऋषभनाथ भगवान के आने से पहले इन्द्र ने अयोध्या में मन्दिर बनवाये जबकि भगवान तो कभी दर्शन/पूजा करते नहीं। भगवान को संसार में लाने वालों
द्रव्य / तत्त्व
द्रव्य – गुणों का समुदाय । तत्त्व – भाव/सारभूत जैसे चेतना लक्षण जीव में मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
ब्रम्हचर्य
पाँचों इन्द्रियों के विषयों से विरक्ति का नाम ब्रम्हचर्य-धर्म है। श्रावकों का धर्म…. दान, पूजा, शील व उपवास हैं। शील का अर्थ/स्वभाव…. ब्रम्हचर्य होता है।
त्याग
त्याग में दान भी आता है (त्याग का ही भेद है) । दान पर-निमित्तिक है। त्याग स्व-निमित्तिक। आचार्य श्री विद्यासागर जी
संयम
आचार्य कुंदकुंद ने कहा है – वहाँ न जायें, जहाँ संयम की वृद्धि न हो अथवा संयम का पालन न हो सके । आचार्य श्री
परिकर
पुरानी मूर्तियों में भगवान के चारों ओर परिकर इसलिये ताकि मन भगवान से ज्यादा दूर ना चला जाये। व्रतों की 5-5 भावनायें/परिकर्म, व्रतों में मन
दिव्यध्वनि
1. अक्षरात्मक – क्योंकि समझ आती है/ज्ञान प्राप्त कराती है। 2. अनक्षरात्मक – देवताओं तथा पशुओं को भी समझ आती है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
गुप्ति
जिसके बल से संसार के कारणों से आत्मा की रक्षा होती है। आगम भाषा में जिसे गुप्ति हैं, अध्यात्म में उसे ध्यान कहते हैं। आचार्य
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