Category: पहला कदम
संदर्भ
आचार्यों के संदर्भ देने से — 1. स्वयं की विशुद्धि बढ़ती है । 2. श्रुत की रक्षा होती है । आचार्यों के उदाहरण ही प्रवचनों
योग्यता
जीव पिछले जन्म में पुरुषार्थ करता है, उसके अनुसार अगले जन्म में पहले योग्यता ग्रहण करता है फिर शरीरादि बनाने के लिये वर्गणायें जमा करता
आम्नाय
आम्नाय – पाठ को शुद्धिपूर्वक पुन: पुन: दोहराना। अनेक ग्रंथ पढ़ने से बेहतर है 2-4 ग्रंथ बार-बार पढ़ना। इससे विषय स्पष्ट होता है। आम्नाय/स्वाध्याय में
ध्यान
किसी एक विषय में निरंतर रूप से ज्ञान का रहना ध्यान है। मन को विषयों से हटाने का पुरुषार्थ करना/भटकते हुये मन को रोकना ही
बाग / बगीचा
लाॅन/बगीचा बनाना “ज्ञात-भाव, अप्रयोजनीय, त्रस/वनस्पति का घात/हिंसा, दोष पूर्ण” । बाग चलेगा। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
ज्ञान
ज्ञान संयमित होना चाहिये। इसीलिये ज्ञान को दर्शन और चारित्र के मध्य में रखा जाता है। जैसे मेले में घूमने जाते हैं तो छोटा बच्चा
प्रमाद / कषाय
प्रमाद में भी कषाय लीं हैं, पर 4 क्रोधादि सामान्य रूप से। कषाय में 25 (4×4+9) विशेष रूप से। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
आत्म-ज्ञान
वह ज्ञान ही नहीं जिसमें आत्म-ज्ञान न हो। पापों से यदि मुक्त्ति में निमित्त न बने, वह ज्ञान किस काम का ! वह ज्ञान बेकार
द्रव्य / तत्त्व
संसार द्रव्य व तत्त्वों का बगीचा है, यह निंदनीय नहीं, संसारी निंदनीय हैं। द्रव्य को बस सुरक्षित रखना है, महत्त्व तत्त्व का है। इसीलिये भगवान
शुद्धि
शुद्धि 8 प्रकार की – 3 गुप्ति (काय, भाव,भाषा) + 5 समिति रूप (विनय, ईर्यापथ, भक्ष्य, शयनासन, प्रतिष्ठापन) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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