Category: पहला कदम

प्रत्येक / साधारण

पेड़ आदि प्रत्येक जीव होते हैं। इनके आश्रित/आधार से अनेक प्रत्येक तथा साधारण जीव रहते हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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ध्यान

अभ्यंतर और बाह्य परिग्रह के प्रति लगाव न होना ध्याता का स्वरूप है । ऐसा ध्याता ध्येय की चिंता किये बिना ध्यान लगा सकता है

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बंध

बंध दो प्रकार का – 1. द्रव्य बंध – प्रदेश बंध – कर्म परमाणुओं का 2. भाव बंध – प्रकृति, स्थिति, अनुभाग मुनि श्री प्रणम्यसागर

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गुरुवयणम्

यानि गुरुवचन, यह उपकरण है। शास्त्र अपरम्पार है, पर गुरुवचन का भी तो पार नहीं क्योंकि गुरु शास्त्रों का निचोड़ हमारे कानों में देते हैं।

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तत्त्व का अनुभव

तत्त्व सम्यक्त्व भी, मिथ्या भी; द्रव्य नहीं (न सम्यक्त्व, ना ही मिथ्या)। 1. वस्त्रधारी को मुनि तत्त्व का अनुभवन नहीं हो सकता। 2. मोक्ष तत्त्व

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काल-अतिक्रम

1. काल निकल जाने पर दान देना। 2. आहार में कौन सी चीज किस समय देना। 3. आहार में कौन सी चीज किस क्रम से

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गुरु-आशीष

श्री भगवती आराधना में कहा है – गुरु का आशीष – 1. मिथ्यादृष्टि को – “धर्म लाभ” 2. सम्यग्दृष्टि को – “धर्म वृद्धि” (धर्म तो

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परिग्रह

1. मनोज्ञ या अमनोज्ञ दोनों में राग या द्वेष रखना परिग्रह है। 2. द्रव्य-परिग्रह – अलग-अलग इन्द्रियों के अलग-अलग द्रव्य। 3. क्षेत्र-परिग्रह – स्थान विशेष

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संयम का फल

पंचमकाल के मुनि तो देव बनेंगे, तो क्या संयम का फल असंयम? संयम का फल…. 1. वर्तमान के मुनि पद का आनंद 2. पापों से

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अतिभारारोपण

स्वयं के ऊपर अतिरिक्त बोझ डालना भी क्या अतिभारारोपण में आयेगा ? योगेन्द्र स्वयं पर अतिरिक्त भार डालने से मानसिक तनाव होता है, जो निश्चित

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मंगल आशीष

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