Category: पहला कदम

सक्रियता और पुद्गल

ज्यादा इंद्रियों तथा मन वालों में पुद्गल ज्यादा होते हैं तथा इनकी सक्रियता भी ज्यादा होती है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी तत्त्वार्थ सूत्र में भी

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उपलब्धि / सुरक्षा

भक्त्तामर आदि मंत्रों/स्तोत्रों से उपलब्धि नहीं, सुरक्षा मिलती है, ये तो Commando हैं। ये मंत्रादि तथा गुरु/भगवान कमाई में सहायक नहीं, कमाई में तो हम

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आस्था एक पर

जिस दुकान से माल लेते आये हो, हमेशा उस पर ही भरोसा रखें। यदि उनकी दुकान पर आपका माल नहीं होगा तो दूसरे की दुकान

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शांति

रूपक – एक बार भगवान ने सब कुछ बाँटा, बस एक चीज अपने पैरों के नीचे दबा ली, वह थी “शांति” । इसलिये “शांति”, शांतिनाथ

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गुप्ति

1. अप्रिय/व्यंग्यवाणी/असत्य बोलने से रोकती है। 2. प्रवृत्ति में भाषा-समिति के साथ/छन्ना लगाकर/हित, मित, प्रिय बोल। 3. निवृत्ति – बोलना ही नहीं। मुनि श्री प्रणम्यसागर

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अर्हद्भक्ति

अर्हद्भक्ति यानि अरहंत-भक्ति। स्तुतियाँ करना/रचना करना, अर्हद्भक्ति है। रत्नकरंड श्रावकाचार आदि कुछ ग्रंथों को छोड़ कर बाकी सब भक्ति-परक ग्रंथों की ही रचना की है,

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हिंसा / अहिंसा

ऋषभदेव भगवान ने तलवार चलाना सिखाया, हिंसकों से रक्षा हेतु । महावीर भगवान ने तलवार छुड़वायी, अहिंसकों को और अधिक अहिंसक बनाने हेतु (मुनियों की

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मन

मन पौद्गलिक है। इसलिये मन पर पौद्गलिक बेहोशी की दवा/नशीले पदार्थ/शब्दों – अच्छे, बुरे/सपनों का प्रभाव होता है। मनोवर्गणायें कमज़ोर होने पर गुरुवचन/मनोवैज्ञानिकों के Motivation,

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सजीव-दर्शन

आज जिन-दर्शन करते समय भगवान का श्वासोच्छ्वास नज़र नहीं आ रहा था। फिर समझ में आया कि श्वासोच्छ्वास नज़र तो समवशरण में भी नहीं आता

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अरति

दूसरे में (मन, वचन, काय से) अरति (Disliking) पैदा करना, ये विरति/विरक्त्ति नहीं है । अरति में लेने के भाव तो होते हैं, पर ऐसे

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मंगल आशीष

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