Category: पहला कदम
अनंतता
अनंत तो बहुत स्थानों पर प्रयोग होता है पर उनमें भी छोटा-बड़ा घटित होता है। जैसे जीव अनंत, पर पुद्गल अनंतानंत, काल उससे भी बड़ा
सम्यग्दर्शन
छह द्रव्यों पर श्रद्धा से सम्यग्दर्शन कैसे ? 6 द्रव्यों में अरूपी भी, उस पर श्रद्धा यानी केवलज्ञान/ ज्ञानी पर श्रद्धा। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
परिणाम
परिणाम दो प्रकार के –> अनादि परिणाम → अनादि से उसी रूप चल रहे हैं जैसे सुमेरु पर्वत। ये पकड़ में नहीं आते। सादि परिणाम
मूर्तिमान-दर्शन
यदि “जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय” अर्घ्य पढ़ते समय मूर्ति में मूर्तिमान के दर्शन हो जायें, तो अकाल मरण टल जाता है। ऐसे ही “संसार-ताप-विनाशनाय” अर्घ्य के समय दर्शन
धनतेरस
1) धनतेरस…. बाह्य-चेतना का विषय.. मिथ्यादृष्टि। 2) धन्यतेरस… अंतरंग का विषय…… सम्यग्दृष्टि। 3) ध्यानतेरस… व्रती लोगों का विषय जो परमात्मा बनने की राह पर हैं..
नय
द्रव्यार्थिक नय –> हर द्रव्य अपने-अपने स्वभाव में है। यानी द्रव्य के स्वभाव को देखना जैसे सिद्ध भगवान अपनी अवगाहना में (यहाँ पर्यायार्थिक नय को
सुख-दुःख-जीवित मरणोपग्रहाश्च
ऊपर के सूत्र में…“च” के लिए आचार्य अकलंक देव कहते हैं –> धर्म, अधर्म आदि दूसरों पर ही उपकार करते हैं लेकिन पुद्गल खुद पर
मूर्ति-पूजा
जैन-दर्शन में मूर्ति-पूजा नहीं, मूर्तिमान की पूजा है। इसीलिये कबीरदास जी ने जैन-दर्शन की मूर्ति-पूजा पर टिप्पणी नहीं की। निधत्ति/निकाचित कर्म समाप्त हो जाते हैं
धर्म
प्रथमानुयोग –> आचार्य गुणभद्र स्वामी – जीवों की रक्षा – अहिंसा परमोधर्म – वृक्ष के लिये बीज। चरणानुयोग –> आचार्य उमास्वामी – रत्नत्रय – तना।
स्व-समय
पूर्ण रूप से तो स्व-समय में सिद्ध भगवान ही रहते हैं। निज में एकत्व, पर से विभक्त्व। अरहंत भगवान भी चार अघातिया कर्मों का अनुभव
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