Category: पहला कदम

शुद्धि

शुद्धि 8 प्रकार की – 3 गुप्ति (काय, भाव,भाषा) + 5 समिति रूप (विनय, ईर्यापथ, भक्ष्य, शयनासन, प्रतिष्ठापन) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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शलाका पुरुष

(63)शलाका पुरुष “63” प्रवृत्ति वाले, सामान्य पुरुष “36” प्रवृत्ति वाले (एक दूसरे की ओर पीठ किये रहते हैं) आचार्य श्री विद्यासागर जी

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नीच गोत्र

नीच गोत्र का बंध… कहे कुछ, करे कुछ और। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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लक्षण

लक्षण – संसारी जीव… दु:ख से डरे, पाप से नहीं। जीव…….. ज्ञान/दर्शन गुण वाला। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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नीति / न्याय

अनंतानुबंधी से बचने का उपाय – जिस क्षेत्र में भी हो, नीति/न्याय से काम करें । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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कर्मों का क्रम

1. ज्ञानावरण – ज्ञान की पूज्यता सो पहले 2. दर्शनावरण – ज्ञान से संबंध। दोनों आत्मा के अनुजीवी गुण 3. वेदनीय – जानकर/देखकर सुख/दु:ख का

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आत्मकल्याण

दोषों में मौन रहना और गुणों का निरीक्षण करना ही आत्मकल्याण में तत्परता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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संयम

अंतरदृष्टि होने के बाद भी संयम की आवश्यकता है। दवाई प्राप्त करने मात्र से काम नहीं चलता, उसे उचित मात्रा में, उचित समय पर, परहेज

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सीताफल

1. सीताफल में गूदा कम, बीज ज्यादा, Process ज्यादा, गृद्धता दिखती है। 2. प्रासुक करना कठिन, सो Avoid करें। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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भीति/ प्रीति/ प्रतीति

पाप से भीति बिना, भगवान से प्रीति नहीं, और भगवान से प्रीति बिना आत्मा की प्रतीति नहीं। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंगल आशीष

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