Category: अगला-कदम
सामायिक संयम
सामायिक संयम सब संयमों (प्राणी, इंद्रिय, अहिंसादि – 5 व्रत) का संग्रह है। बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीव काण्ड
मन:पर्यय
मनःपर्यय ज्ञान… 1. ऋजुमति – 3 प्रकार का –> सरल मन, वचन, काय की चेष्टाओं को जाने। 2. विपुलमति – 6 प्रकार का –> सरल
विस्रसोपचय
विस्र = स्वभाव से उपचित(चिपकने वाले); कर्म/ नोकर्म से निरपेक्ष, कर्म/ नोकर्म परमाणुओं पर स्थित। ये रूक्ष या स्निग्ध होते हैं, इसीलिये चिपके रहते हैं।
केवल ज्ञानी
हुंडक संस्थान का उदय 14वें गुणस्थान तक रहता है। सामान्य केवलज्ञानी के दाढ़ी मूंछें यथावत् रहती हैं। शलाका पुरुषों के दाढ़ी मूंछें नहीं होतीं, तीर्थंकरों
लेश्या काल
जघन्य काल -> शुभ/ अशुभ -> अंतर्मुहूर्त। उत्कृष्ट काल –> अशुभ -> कृष्ण -> 33 सागर, नील -> 17, कापोत -> 7 सागर (2 अंतर्मुहूर्त
16 बार स्त्री
अधिकतम 2000 सागर की त्रस पर्यायों में 16-16 बार स्त्री, पुरुष, नपुंसक बनने की यह उत्कृष्ट सीमा है। 16, 16 बार बनना ही पड़ेगा, ऐसा
सम्यग्दर्शन
सम्यग्दर्शन के लिये → 1. सगारो यानी साकार उपयोग (जो साकार को ग्रहण करे = ज्ञानोपयोग)। 2. जागरुक (5 निद्राओं में निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धि अजागरुक)।
पदार्थ
मुख्य रूप से → जीव, अजीव। इनके दो-दो भेद → पुण्य व पाप प्रकार के। पुण्य जीव रूप → सम्यग्दृष्टि/ पुण्य में प्रवृत्ति करे। पाप
आयुबंध
आयुबंध सातवें गुणस्थान में नहीं होता। लेकिन आयुबंध यदि निचले गुणस्थान में शुरू हो गया हो और इसी बीच सातवाँ गुणस्थान प्राप्त हो जाय, तो
केवली के प्राण / इन्द्रियां / पर्याप्तियां
सयोग केवली के क्षयोपशम भाव का अभाव होने से भावेन्द्रियां नहीं होतीं। पर्याप्तियां द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा से जानें। प्राण 4( श्वासोच्छवास, आयु, वचन, काय), अयोग
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