Category: अगला-कदम

अंधकार

9वें अरुणद्वीप से घना अंधकार (जिसे हज़ारों सूर्य भी नहीं छेद सकते हैं। वयलाकार Shape में ब्रम्हलोक के सबसे ऊपर के अरिष्ट विमान तक उठता

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विपाक

पुद्गल(कुर्सी आदि) का विपाक प्राय: समय पर ही, कर्म का कभी भी जैसे आयु/ अकाल मृत्यु। मुनि श्री अजितसागर जी

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शरीर के वर्ण

1. बादर तैजसकायिक… पीत (शिखा, मूल में) । 2. बादर जलकायिक …. शुक्ल (बिना रंग के जल दिखेगा कैसे ! धार/ समूह में साफ दिखता

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सामायिक संयम

सामायिक संयम सब संयमों (प्राणी, इंद्रिय, अहिंसादि – 5 व्रत) का संग्रह है। बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीव काण्ड

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मन:पर्यय

मनःपर्यय ज्ञान… 1. ऋजुमति – 3 प्रकार का –> सरल मन, वचन, काय की चेष्टाओं को जाने। 2. विपुलमति – 6 प्रकार का –> सरल

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विस्रसोपचय

विस्र = स्वभाव से उपचित(चिपकने वाले); कर्म/ नोकर्म से निरपेक्ष, कर्म/ नोकर्म परमाणुओं पर स्थित। ये रूक्ष या स्निग्ध होते हैं, इसीलिये चिपके रहते हैं।

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केवल ज्ञानी

हुंडक संस्थान का उदय 14वें गुणस्थान तक रहता है। सामान्य केवलज्ञानी के दाढ़ी मूंछें यथावत् रहती हैं। शलाका पुरुषों के दाढ़ी मूंछें नहीं होतीं, तीर्थंकरों

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लेश्या काल

जघन्य काल -> शुभ/ अशुभ -> अंतर्मुहूर्त। उत्कृष्ट काल –> अशुभ -> कृष्ण -> 33 सागर, नील -> 17, कापोत -> 7 सागर (2 अंतर्मुहूर्त

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16 बार स्त्री

अधिकतम 2000 सागर की त्रस पर्यायों में 16-16 बार स्त्री, पुरुष, नपुंसक बनने की यह उत्कृष्ट सीमा है। 16, 16 बार बनना ही पड़ेगा, ऐसा

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सम्यग्दर्शन

सम्यग्दर्शन के लिये → 1. सगारो यानी साकार उपयोग (जो साकार को ग्रहण करे = ज्ञानोपयोग)। 2. जागरुक (5 निद्राओं में निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धि अजागरुक)।

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मंगल आशीष

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