Category: अगला-कदम

अनाहारक

चौदहवां गुणस्थान अनाहारक होता है। जैसे Retirement से पहले मकान की Maintenance पर खर्चा बंद कर देते हैं । इसी तरह विग्रह गति में जीव

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तत्व

प्रयोजनभूति वस्तु के स्वभाव को तत्व कहते हैं । जैनेन्द्र सिद्धांत कोष 2/352

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उपयोग

शुभोपयोग – प्रभातकालीन लालिमा – सूर्योदय ( मोक्ष) अशुभोपयोग – संध्याकालीन लालिमा – सूर्यास्त (गर्त) पं. रतनलाल जी इन्दौर

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कर्मोदय

कर्मोदय में कर्मों को कारण ना मानकर हम नोकर्म को कारण मान लेते हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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शुक्लध्यान

क्षपक श्रेणी की अपेक्षा – पहला शुक्लध्यान – दसवें गुणस्थान तक होता है, ———————-इसमें मोहनीय कर्म का नाश दसवें गुणस्थान के अंत में हो जाता

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अपर्याप्तक

अपर्याप्तक अवस्था तो सबके होती है तो क्या सबके पाप प्रकॄति होगी ? अपर्याप्तक अवस्था दो प्रकार की होती है। 1. – लब्धि अपर्याप्तक –

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उपयोग

एक व्यक्ति ने जिन्न सिद्ध कर लिया । पर जिन्न की शर्त थी, कि काम ना मिलने पर वह मालिक को खा जायेगा । यहां

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भाव

“मिथ्यात्व” औदयिक भाव में लिया गया है, जबकि “सम्यग्मिथ्यात्व” तथा “सम्यग्प्रकृति” क्षयोपशमिक भाव में आते हैं, क्योंकि दोनौं में ही “समयक्त्व” है, जो क्षयोपशम से

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अनुकम्पा

प्रश्न :- नरक में “उपाय-धर्मध्यान” नहीं होता, फिर सम्यग्दर्शन प्रकट होने के लिये “अनुकम्पा” कैसे आती है ? उत्तर :- “अनुकम्पा” बाह्य लक्षण है, आवश्यक

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शरीरों की सीमा

आहारक और मनुष्यों के शरीर – मनुष्य लोक तक ही जा सकते हैं । देवों के वैक्रियक शरीर – त्रसनाली तथा सोलहवें स्वर्ग से तीसरे

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मंगल आशीष

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