Category: वचनामृत – अन्य
समस्या / व्यवस्था
समस्या तात्कालिक है, व्यवस्था त्रैकालिक, समस्या व्यवस्था है, कर्मों की। यदि समस्या को व्यवस्था मान लिया (कर्मों की) तो समस्या समाप्त, लेकिन यदि समस्या को
प्रकृति / परिस्थिति
परिस्थितिवश सैनिक राष्ट्र रक्षा में हिंसा, प्रकृतिवश डाकू (स्वभाववश)। परिस्थिति – गाय को बचाने झूठ बोलना। प्रकृति – गाय को बचाना। मुनि श्री सुधासागर जी
धर्म कैसे/ कितना करें ?
धर्म कैसे करें ? जैसे पाप करते हैं, लगातार। कितना करें ? Unlimited. निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी (चारित्रसार-चामुंडराय जी)
डर
डर के कारण – 1. भयानक दृश्य आदि देखने से जैसे Horror Film. 2. डरावनी चीजों के चिंतन से। 3. शरीर/ मानसिक दुर्बलताओं से। 4.
विश्वास
ताकतवर से प्राय: कहते हैं – “एक दिन मेरा भी आयेगा” यही बात विश्वास के साथ कभी भगवान से कह कर देखो, एक दिन ख़ुद
Balanced Life
मंदिर/ दिन में धर्मध्यान, व्यवसाय/ रात में, बेईमानी/ मस्ती ये Balanced Life नहीं कही जा सकती। धर्म/ ईमानदारी के साथ सीमित Enjoyment Balanced Life कही
महान
1) हम गुरु को जितना याद करेंगे, उतने हम महान बनेंगे। 2) गुरु जितना हमें भूलेंगे, उतने वे महान बनेंगे। मुनि श्री सुधासागर जी
स्नातक
“स्नात” यानि नहाना। स्नातक “स्नात” शब्द से बना है। इसीलिये भगवान (अरहंत) को स्नातक कहते हैं, जिन्होंने कर्मों (आत्मा का घात करने वाले) को धो
Ego
Ego से झंडा-डंडा, शास्त्र-शस्त्र, बांसुरी-बांस, निर्जरा (कर्म काटना/समाप्त होना) से निकाचित/निद्यत्ति (कर्मों की तीव्र/घातक प्रकृतियाँ) कर्म बन जाते हैं। निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
क्रिया
क्रिया = जल छानना। अर्थ-क्रिया = जीवों की रक्षा के भाव से, जल छानना। निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
Recent Comments