Category: वचनामृत – अन्य
महान
1) हम गुरु को जितना याद करेंगे, उतने हम महान बनेंगे। 2) गुरु जितना हमें भूलेंगे, उतने वे महान बनेंगे। मुनि श्री सुधासागर जी
स्नातक
“स्नात” यानि नहाना। स्नातक “स्नात” शब्द से बना है। इसीलिये भगवान (अरहंत) को स्नातक कहते हैं, जिन्होंने कर्मों (आत्मा का घात करने वाले) को धो
Ego
Ego से झंडा-डंडा, शास्त्र-शस्त्र, बांसुरी-बांस, निर्जरा (कर्म काटना/समाप्त होना) से निकाचित/निद्यत्ति (कर्मों की तीव्र/घातक प्रकृतियाँ) कर्म बन जाते हैं। निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
क्रिया
क्रिया = जल छानना। अर्थ-क्रिया = जीवों की रक्षा के भाव से, जल छानना। निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
मरण
सुमरण…. भगवान का नाम लेते हुए मरण। समाधि मरण…. क्रमश: भोजनादि छोड़ते हुए भगवान के स्मरण के साथ मरण। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मुखौटे
शेर का मुखौटा लगा कर बच्चा माँ को डरा नहीं पाता क्योंकि माँ तो असली चेहरे को जानती है। भगवान भी तो असली चेहरे को
अंतरंग का महत्व
Label बाह्य और Level* अंतरंग, प्राय: अलग-अलग। बाह्य का Label मिट भी जाय तो भी अंदर की दवा काम करेगी। Label कितना भी सुंदर हो
मंदिर का महत्व
नित्य मंदिर के दर्शन क्यों ? 1. नित्य स्कूल जाते हैं पढ़ने के लिये, मंदिर जाते हैं अपने को गढ़ने के लिये। 2. जैसे प्रियजन
भक्त / भगवान
भक्त दीपक, भगवान सूरज; भक्त भगवान को दीपक कैसे दिखा सकता है ? दीपक दिखाने की तो उपयोगता नहीं है, पर दीपक से भगवान की
हलका होना
पहाड़ पर चढ़ते समय गुरु ने शिष्य के सिर पर वज़न रख कर दिया। शिष्य को परेशानी हो रही थी, तब गुरु ने वज़न हटवा
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