Category: वचनामृत – अन्य

मायाचारी / सरलता

ढोलक ऊपर से ढकी/ सुंदर, अंदर से पोल। इसीलिये पैरों पर रख कर पीटी जाती है, हालांकि वह बांसुरी आदि वाद्यों से बड़ी व भारी-भरकम

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दुःख दूर करने का उपाय

यदि शुभ भाव रखेंगे/ अपने आपको खुश अनुभव करेंगे तो दु:ख प्रवेश कैसे करेगा ! बाकी उपायों से दु:ख दूर नहीं होता, उन पर मरहम

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आलोचना

आलोचना को गम्भीरता से लें लेकिन व्यक्तिगत नहीं। मुनि श्री अविचलसागर जी

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बहना

यदि निरंतर बहने/ चलने का स्वभाव हो तब बांध भी बना दो तो भी प्रगति/ चलने को रोक नहीं सकते। तब जल स्तर ऊपर चलने

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तप / संयम

सोना तपाने से शुद्ध हो जाता है फिर भी सोने के तरल होने पर उसमें सुहागा डाला जाता है ताकि उसकी शुद्धता बनी रहे। श्रावक

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संयम

रावण धर्म का पंडित, मज़बूत/ सुरक्षित किले के अंदर, बड़ी सेना का मालिक, फिर भी हार गया। जबकि राम थोड़ी सी सेना के साथ किले

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धन संचय

संसार में धन संचय से समृद्धि/ प्रगति बताई, धर्म में दुर्गति। लेकिन संचित समृद्धि का सदुपयोग किया तो शाश्वत प्रगति। निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

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पुण्य / पाप

पेट के लिये कमाना पुण्य, क्योंकि जीवों की रक्षा हो रही है, Detached-Attachment, पुण्य का बाप। पेटी के लिये कमाना पाप, लोभ की रक्षा हो

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पूर्ण

पूर्ण को जाना नहीं जा सकता सिर्फ अनुभव किया जा सकता है जैसे पूरे चावलों को जानने चले (दबा-दबा कर देखा) तो चावल की जगह

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मंगल आशीष

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