Category: वचनामृत – अन्य
पीछे पड़ना
किसी के पीछे ज्यादा नहीं पड़ना चाहिये – इसका एक भव सुधारने के लिये अपने भव-भवांतर क्यों बिगाड़ना चाहते हो ! झगड़ा न करें पर
पूजा / भक्ति
पूजा गुणानुवाद है, भक्ति गुणानुराग – भगवान/गुरु व उनके गुणों से। भक्ति श्रद्धा का बाह्य रूप है पर इससे आंतरिक प्रेम उत्पन्न करता है। मुनि
मनुष्य जीवन की सार्थकता
पनही* पशु के होत हैं, नर के कछू नहीं होत। नर यदि नर-करनी करे, तब नारायन होत। *जूता (पशु की खाल का) मुनि श्री प्रमाणसागर
सक्रियता
जुगुनू तब तक ही चमकता रहता है जब तक वह उड़ता रहता है/सक्रिय रहता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
धर्म
अभाव में धर्म करना बड़ी बात नहीं, अभाव का एहसास न होना, धर्म की बात है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मुक्ति
इस काल में तो मुक्ति नहीं, तो धर्म क्यों करें ? लाइन में तो लग लें ! पर लाइन में लग कर क्या करोगे, जब
संगति
लुहार सुबह अग्नि को पूजता है । बाद में उसी अग्नि को घन से पीटता है । कारण ? सुबह अग्नि एकाकी रहती है, बाद
धर्म / अधर्म
अधर्म = बदला लेना, धर्म = अपने आपको बदल लेना। आर्यिका श्री पूर्णमती माताजी
दृष्टि
दृष्टि पलटा दो, तामस समता हो और कुछ ना (तामस और समता, एक दूसरे को पलटाने से, यानि अंधकार में समता रखूं) आचार्य श्री विद्यासागर
भय
भय से आयु कम होती है, 1घंटा भय की अवस्था में रहने से कहते हैं 2½घंटा उम्र कम हो जाती है। अपराधियों की तथा चिड़ियों
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