Category: वचनामृत – अन्य

संयम या संगति

या तो ख़ुद संयम/नियम ले लो, नहीं ले सकते तो संयमी की संगति कर लो। लक्ष्मण को क्रोध बहुत आता था, शांत राम की संगति

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क्रिया / भाव

अच्छी/शुभ क्रियायें यदि बुरे भाव से भी की जायें तो भी फायदेमंद रहतीं हैं क्योंकि वे अच्छी हैं सो अच्छा ही करेंगी। दु:ख पड़ने पर

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सरलता

कुछ सुनने पर बुरा ना लगना, ना ही किसी को बुरा कहना। 1. साधु के लिये – मन में होय सो वचन उचरिए, वचन होए

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आधार / आधेय

आधार – घड़ा/सृष्टि/चैत्यालय आधेय – घी/ दृष्टि/ चैत्य आधार से ज्यादा आधेय महत्त्वपूर्ण होता है, उसे सम्भालना/सुधारना ज्यादा ज़रूरी। घर से एक साधु बना हो,

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पुण्यात्मा

पुण्यात्मा की पूजादि इसलिये क्योंकि साधारणजन ऐसे गुणों को पा नहीं पाते । उनके पुण्य साधारणजन की रक्षा करते हैं जैसे राजा करते थे ।

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नियति

बचपन में नियति वह सब देती है, जिसकी ज़रूरत होती है। वृद्धावस्था में वह सब वापस लेती जाती है, जिस-जिस की ज़रूरत नहीं होती –

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ऊबना

रोज़ वही पूजा पाठ से कुछ लोगों को ऊब आने लगती है। वही लोग पाप भी रोज़ करते हैं, उससे ऊब क्यों नहीं होती ?

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वास्तविक स्वरूप

संसार शोकमय, काया रोगमय, जीवन भोगमय, सम्बंध वियोगमय; बस, धर्म/सत्संग ही उपयोगमय होता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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भक्त

गुटका आदि व्यसनों से भक्त को ज्यादा पाप लगता है क्योंकि उनको तो प्रशस्त-पुण्य मिला था गुरु/भगवान की सेवा करने का, उस पुण्य को उन्होंने

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उपयोगिता / तप

सोने से बेहतर है, गहना बनना। पर उसमें तो अशुद्धि मिलाई जाती है ? पर थोड़ी अशुद्धि के साथ उसकी उपयोगिता भी तो बढ़ जाती

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मंगल आशीष

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