Category: वचनामृत – अन्य
व्रत
व्रत निधि है, विरति निषेध*। आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (19 अगस्त 2024) * पापों को ना कहना/ नहीं करना।
मोह
एक राजा ने चित्रकारों की एक प्रतियोगिता कराई। इसमें किसी ने खेत दिखाया, इतना सजीव कि गाय भ्रमित हो गई। किसी ने फूल दिखाये तो
गृहस्थ
गृहस्थ चावल जैसा है, पूजा की सामग्री में पुजारी, घर में खिचड़ी, गरीब को दान करते समय साहूकार/ माँ रूप। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
क्रोध
कमजोर ही अपने से कमजोर पर क्रोध करता/ कर सकता है। क्रोध करने वाले को शक्तिशाली नहीं कहा जा सकता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
परनिन्दा / बुराई
गटर का ढक्कन तभी उठाओ, जब गटर को साफ कर सकने की सामर्थ हो। इसी तरह परनिन्दा/ दूसरों की बुराई तब करो जब बुराइयों को
स्वतंत्रता
स्व के तंत्र* में बंधना स्वतंत्रता है। अगर अपने तंत्र में नहीं बंधेंगे तो स्वछंदता आ जायेगी। मुनि श्री प्रमाणसागर जी * नियम/ व्यवस्था/ अनुशासन
स्व/ पर/ परम
आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते थे – “स्व” को साफ करो, “पर” को माफ करो, “परम” को याद करो। आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
शरीर
शरीर …. कर्म शिल्पकार की रचना है। मिट्टी की इमारत कब ढल जाए पता नहीं, फिर गुमान क्यों ? ये चंद साँसों के पिल्लर पर
आकुल / व्याकुल
आकुल अच्छे कामों में व्यवधान से, व्याकुल बुरे कामों में व्यवधान से। मुनि श्री मंगल सागर जी
समय
स्व-समय(आत्मा) में लीन रहने वालों का समय(काल) उनका अपना हो जाता है, समय पर मालकियत हो जाती है। आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (31 जुलाई)
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