Category: वचनामृत – अन्य

वैभव

वैभव हमेशा परिग्रह ही नहीं, अनुग्रह* भी है। *Grace मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मर्यादा

मनुष्य जागते में भी गिर जाते हैं; पक्षी सोते में भी नहीं। कारण ? पक्षी अपनी मर्यादा कभी नहीं छोड़ते; जबकि मनुष्य मर्यादा तोड़ने में

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अनेकांत

सब सही कहना सही नहीं। समग्रता से, दूसरे के दृष्टिकोण से देखना अनेकांत है। गांधी जी ने कहा था, “मैं अपने दुश्मनों को भी अपना

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एकत्व

आइने के सौ टुकड़े करके मैंने देखे हैं। एक में भी अकेला था, सौ में भी अकेला। मुनि श्री महासागर जी

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निंदा

आलोचन से लोचन खुलते हैं ; स्वागत करें। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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संस्कार

संस्कार देने की चीज़ नहीं, जगाये जाते हैं । उन्हें बनाये रखने के लिये, सुसंगति दी जाती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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धर्म / नीति

धर्म: स्वमुखी/आत्ममुखी, निश्चय, परमार्थ में जीना सिखाता है। नीति: प्राणमुखी, व्यवहार, संसार में जीना सिखाती है। मुनि श्री सुधासागर जी

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बुद्धि / समझदारी

बुद्धि में तर्क होता है; पक्ष/विपक्ष, एक तरफ़ झुकाव। समझदारी निष्पक्ष होती है; अनुभव तथा विशुद्धि से आती है। एक ज़िगज़ैग पाइप में केबॅल डालना

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अवस्थायें

अवस्थाएं…. 1. सुप्त – सुधबुध नहीं रहना। ज़्यादातर लोग इसी अवस्था के होते हैं। 2. स्वप्न – नयी दुनिया की रचना। 3. जाग्रत – जीवन

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लोभ

लोभ = किसी वस्तु को पाने की तीव्र इच्छा। चीजें भाएं, तो बुराई नहीं, पर वे चीजें लुभायें नहीं। जैसे किसी का सुंदर मोबाइल देखकर

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मंगल आशीष

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