Category: वचनामृत – अन्य
मन / चित्त
मन बाहरी, इसीलिये बाहरी वस्तुओं से प्रभावित हो जाता है। चित्त अंतरंग, संस्कार चित्त पर ही होते हैं, यह Hard Disk है, भाव चित्त से
भाव शुद्धि
1. समभाव – सब जीवों पर । 2. ममभाव – कम करें । 3. प्राणायाम – शरीर शुद्धि से भाव शुद्धि भी । मुनि श्री
निषेध
मन निषेध के प्रति आकर्षित होता है, यदि निषेध दूसरे के द्वारा आरोपित किया जाये तो। खुद के द्वारा निषेध लगाने पर मन उधर नहीं
क्रोध
1. तामसिक – दूसरों को सताने – मरणांतक 2. राजसिक – अहंकार पुष्टि – दीर्घकाल 3. सात्विक – दूसरों की भलाई के लिये – अल्पकाल
नुकसान
हर नुकसान, नुकसान करके ही नहीं जाता, फायदा भी कर जाता है जैसे सिर में चोट लगने पर खून निकलना। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
नकल
पं. बनारसीदास जी मुनियों की नकल करके 3 दिन तक कमरे में अकेले ध्यान करते रहे (गृहस्थों के आवश्यक कर्त्तव्य छोड़कर ) इस अनुभव को
पाप बंध पर नियंत्रण
1. चुनाव लड़ना नहीं है लेकिन कौन जीते/हारे, इसे लेकर आपस में लड़ाई क्यों ? क्या इससे पापबंध नहीं होगा ! 2. जानवरों को मारना
संस्कार
मशीन से कपड़ा Defective निकल रहा है, तो सुधारोगे मशीन को या कपड़े को? सुधारना तो बिगाड़ने वाले को ही चाहिये। बच्चों को संस्कार पति/पत्नि
अभिमान
बड़े लोगों में प्राय: अभिमान देखा जाता है, फिर भी उनका वैभव/नाम कम क्यों नहीं होता ? एक बार बड़ी कमाई (पुण्य) कर लेने पर
भक्त / भगवान
भगवान, धर्म गुरु, शास्त्र, कुल, जाति, देश सब सच्चे चाहिये, भक्त (मैं)? कुंडली तो दोनों की समान होनी चाहिये न! मुनि श्री सुधासागर जी
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