Category: वचनामृत – अन्य

पुण्यहीन का महत्व

पार्श्वनाथ भगवान पर जब उपसर्ग हुआ तो उन पर छत्र लगाने सबसे पुण्यहीन आये, जो पिछले जन्म में सांप थे (सांप इतना पुण्यहीन होता है

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संसार / मोक्षमार्ग

संसार-मार्ग पर टिक नहीं सकते, पर टिकना चाहते हो ! मोक्ष-मार्ग पर टिक सकते हैं, पर टिकना नहीं चाहते हो !! मुनि श्री महासागर जी

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गुरु दर्शन

जिन-जिन वस्तुओं/ सुविधाओं की कमी में श्रावक दु:खी होता है, गुरु उन-उन के अभाव में सुखी रहकर दिखाता है । मुनि श्री सुधासागर जी

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परिग्रह

जलाशय के किनारे बड़े पेड़ भी सूखने लगते हैं । (परिग्रही आसपास वालों को भी पनपने नहीं देते) आचार्य श्री विद्यासागर जी

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आत्म-निरीक्षण

सामान्यत: घर में कचरा दिखायी नहीं देता है पर झाड़ू लगाने पर दिखने लगता है । ऐसे ही, आत्मनिरीक्षण करने पर दोष दिखने लगते हैं

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पाप / बुरी वस्तु

पाप जिसे पापी चाहता हो, बुरी वस्तु जिसे बुरा आदमी चाहता हो । साधु ऐसी वस्तुयें रखते ही नहीं जिस पर असंयमी की नियत बिगड़े

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श्रमण / श्रावक

श्रमण भोगों को निष्परिग्रह-भाव से ग्रहण करते हैं, श्रावक परिग्रह-भाव से, श्रमण को बढ़िया आहार भी रसना इंद्रिय को नियंत्रण करने का अभ्यास कराता है,

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अंध-विश्वास

अंध-विश्वास से शुरुवात घातक होती है। विश्वास करने से पहले विचार/ ज्ञान/ विवेक लगायें। अंत में तो विश्वास को अंधा होना ही पड़ता है यानि

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आनंद / मज़ा

संसारियों को आनंद नहीं, मज़ा (मिर्च मसाले वाला) चाहिये। मज़ा में कर्म बंधते हैं, आनंद में कटते/ घटते हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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सम्बंध

सम्बंध शौक नहीं, मजबूरी है, संसारी जीवों के लिये । जब मजबूरी है तो झुककर निभाओ भी । सम्बंध जब टूटते हैं तो बैर बन

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मंगल आशीष

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