Category: वचनामृत – अन्य
धर्म / शर्म
धर्म में शर्म कैसी ? जब पापी दुनिया की शर्म ना करके, पाप नहीं छोड़ते तो धर्मात्मा धर्म क्यों छोड़ें ! मुनि श्री सुधासागर जी
ग्रह और कर्म
ग्रह अच्छा बुरा समय लाते नहीं, बल्कि उनकी ओर इशारा करते हैं । अच्छा बुरा समय तो कर्मों से ही आता है । मुनि श्री
ज्ञान
आकुलता का कारण – जब दूसरों को जानने की कोशिश हो, निराकुलता का कारण – जब अपने को जानने की कोशिश हो । मुनि श्री
नसीहत / वसीयत
नसीहत प्राय: अच्छी नहीं लगती क्योंकि उसमें कुछ छोड़ना होता है, जबकि वसीयत में मिलता है । जिन्होनें नसीहत सही से ली हो उन्हें वसीयत
भगवान की शरण
शनि, मनी और दुश्मनी उन्हीं को प्रभावित करते हैं… जो चिंतामणी की शरण में नहीं रहते । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
आत्म-कल्याण
घर में रहकर आत्म-कल्याण कैसे करें ? घर को “मेरा” ना मान कर, “बसेरा” मानना शुरू कर दो । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
तप / त्याग
त्याग बाह्य वस्तु का, तप अंतरंग इच्छाओं का (इच्छा निरोध: तप:) मुनि श्री सुधासागर जी अपेक्षा निरोधः तपः आचार्य श्री विद्या सागर जी
पाप पुण्य
इस युग में पाप ज्यादा या पुण्य ? ज्यादा कैसे ?? उत्तर… अंधे ज्यादा या दोनों आँखों से देखने वाले ? अपाहिज कितने ? स्वस्थ
सन्यास
सत्य में व्यस्त होकर, संसार से विरक्त होना ही सन्यास है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
चिंता / चिंतन
चिंता एक विषय पर अटक जाना, चिंतन एक विषय से आगे बढ़ जाना । चिंता से बचने का चिंतन सही/आसान तरीका है । मुनि श्री
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