Category: पहला कदम

भगवान के वृक्ष

भगवान जिस वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त करते हैं उसमें न फल होते हैं न फूल। मुनि श्री मंगलानंद सागर जी

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पूत

पूत यानी पुण्य। इससे ही बना होगा “सपूत”। तभी तो बच्चे के बारे में पूछते हैं – “ये किनका पुण्य है ?” पर कपूत के

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निर्वतना

निर्वतना यानि रचना, दो प्रकार – 1. मूलगुण निर्वतना – शरीर, वचन, मन की। जैसे Face की Plastic Surgery, वचन की नकल, अलौकिक शक्ति पाने

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निन्हव

ज्ञान छुपाने के अलावा, यदि पति गलत कामों से पैसा कमाता है पर पत्नि रोकती नहीं, बच्चों को अभक्ष्य खाने से रोकते नहीं वरना हम

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मनुष्य / देव

मनुष्य संख्यात, देव असंख्यात, इसलिए भी मनुष्य पर्याय दुर्लभ। अधिक से अधिक 2 हजार सागर त्रस पर्याय। मनुष्य लगातार 48 भव। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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आकर्षण

एक प्रसिद्ध भजन है, “चले आना प्रभुजी, चले आना…” प्रश्न: प्रभु क्यों आयें ? क्या आकर्षण है तुम्हारे पास ? सिद्ध परमेष्ठियों में आकर्षण है।

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मद/ गारव

मद के लिए कारण चाहिए, गारव (ऋद्धि, रस, सात) के लिए नहीं। आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी के सान्निध्य में भगवती आराधना- श्र्लोक 299 का

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भूतप्रेत पूजा

बेडौल शरीर/ डरावनी आकृति वालों की पूजा करने वालों से पूछें- यदि ऐसा बच्चा आपके यहाँ पैदा हो जाए तो स्वीकारोगे/ खुश होगे ? धर्मेन्द्र(चिंतन)-

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रत्नत्रय

भारत देश में तीनों मौसम एक दूसरे के पूरक। ऐसा लगता है जैसे कि रत्नत्रय के लिए सहायक वातावरण इसी देश में है। चिंतन

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संकल्पी हिंसा

3 ड्रेस का नियम है पर एक में काम चल सकता था, तो दो की संकल्पी हिंसा हुई। एक बाल्टी पानी की जगह दो बाल्टी

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मंगल आशीष

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