Category: पहला कदम

कुलाचार

कुलाचार से सम्यग्दर्शन ना भी हो पर सहायक ज़रूर होता है। चिंतन

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सकारात्मकता

नकारात्मक सोच कर्म के उदय से/ औदयिक भाव। सकारात्मक क्षायोपशमिक भाव, इसके लिये पुरुषार्थ करना पड़ता है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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अभक्ष्य

अभक्ष्य सेवन से निकाचित कर्मबंध होता है। इसलिए बच्चों को णमोकार मंत्र याद कराने से पहले 8 अभक्ष्यों (मांस, मदिरा, मधु, 5 उदम्बरों) का त्याग

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निर्वाण दिवस

भावना भायें → मैं ऐसा बनूँ। प्रभावना → सब जानें/ वैसे बनें। सिर्फ़ महावीर भगवान का मनाने का नुकसान भी → जैन धर्म 2600 वर्ष

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ज्ञान / अनुभूति

ज्ञान तो ख़ुद भी पढ़कर ले सकते हो पर अनुभूति तभी जब उनसे ज्ञान लिया हो जिन्होंने उस ज्ञान की अनभूति की हो। मुनि श्री

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ध्यान / चिंतन

ध्यान तदरूप जैसे पिंडस्थ ध्यान में मेरी आत्मा सिद्ध रूप। वर्तमान पर्याय का ध्यान नहीं होता। मुनि भी साधु परमेष्ठी के ध्यान में, अपने से

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भगवान के मस्तिष्क

भगवान के मस्तिष्क नहीं होता। दिमाग तो शरीराश्रित होता है, सिद्ध के शरीर नहीं (अरिहंत के Inactive)। मस्तिष्क नहीं सो राग द्वेष नहीं। मुनि श्री

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सर्वावधि / मन:पर्यय

जब सर्वावधिज्ञान एक परमाणु तक को जानता है, तो मन:पर्यय ज्ञानी उसका अनंतवा भाग कैसे जानेगा ? आशय द्रव्य से नहीं, पर्याय से लेना। पर्याय

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मन

नोइंद्रिय/ अंगोपांग नामकर्म के उदय से मन बनता है। हृदय स्थल पर होने के कारण ही मन को हृदय और हृदय को मन कहने लगते

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मंगल आशीष

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July 7, 2024

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