Category: पहला कदम
शरीर परिग्रह
ऊपर-ऊपर के देवों में शरीर तथा परिग्रह हीन होते जाते है (तत्त्वार्थ सूत्र – 4/21)। उसमें परिग्रह से पहले शरीर लिया। कारण ? 1. शरीर
पाप
पाप तो बुरा ही है → निश्चय से, सापेक्षत: भी बुरा है → व्यवहार से। चिंतन
द्रव्य
द्रव्य गुणों को हमेशा बनाये रखता है, इसलिए नित्य है। साधारण/ सामान्य गुण = अस्तित्व, द्रव्यत्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्व* आदि। विशेष गुण = जैसे जीव में
वस्तु-स्वभाव: धर्म:
वस्तु का स्वभाव ही धर्म है*। पर स्वभाव तो बदलता रहता है तो क्या धर्म भी बदलता रहता है ? धर्म 2 प्रकार का –>
जीवाश्च
सूत्र… यानी जीव भी द्रव्य हैं। “च” से जीव रूपी व अरूपी भी। बहुवचन का प्रयोग –> एक जीव नहीं वरना “एको ब्रह्म” हो जायेगा।
सापेक्षवाद
द्रव्य वह जो अंतरंग तथा बाह्य निमित्तों के माध्यम से अपने अस्तित्व को बनाये रखे, चाहे वह शुद्ध द्रव्य ही क्यों न हो। परिणमन दूसरे
समय
जो लोग कहते हैं कि समय नहीं है, वे आत्मा के अस्तित्व को नकारते हैं। क्योंकि “समय” तो “आत्मा” को कहते हैं। विद्वत श्री संजीव
देवों में गति
देवों में पंचेंद्रिय संज्ञी ही जाते हैं। असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्तक –> भवनत्रिक में ही। सम्यग्दृष्टि देवों में ही, पांचवे गुणस्थान वाले 16 स्वर्ग तक। मुनि
कर्म-फल
रमेश ने मित्र सुरेश से 2000 रु. उधार लिये। रमेश के मन में बेईमानी आ गयी। सुरेश कर्म-सिद्धांत का विश्वासी, कहता –> लेकर जायेगा नहीं!
उत्तम क्षमा धर्म
एकेन्द्रिय जीवों से क्षमा मांगने/ धारण करने के कारण —- 1. उनके बहुत उपकार हैं। उनके बिना हमारा जीवन चल नहीं सकता। 2. कुछ वनस्पतिकायिक
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