Category: पहला कदम
नियति / भव्यत्व
नियति = समय की अपेक्षा काललब्धि। भव्यत्व = अंतरंग क्षमता। पर सिर्फ नियति/ नियतिवाद को मानना मिथ्यात्व है। क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
भाषण / उपदेश
भाषण सिर्फ सुनने, स्वार्थ हेतु। उपदेश ग्रहण करने, स्व-पर कल्याण हेतु। उप = निकट पहुंचे + देश = देशना। यह मुख्यत: गुरु (साधु) का काम।
समता / ममता
मोही के घर में ममता तथा ज्ञानी के घर में समता रहती है। समता = सम (राग द्वेष से रहित/ सुख दुःख में समान)। ममता
अध्यात्म/सिद्धांत ग्रंथ
अध्यात्म ग्रंथ विशेष व्यक्तियों की अपेक्षा। सिद्धांत ग्रंथ सार्वभौमिक। जानने से श्रद्धा/ सम्यग्दर्शन नहीं, मानने से। हाँ ! जानना, मानने के लिये ज़रूरी होता है।
भावना / योग्यता
भावना से मुनि पद तक पा सकते हैं पर योग्यता(वज्रवृषभ नाराच संहननादि) बिना मोक्ष नहीं। तीर्थंकर की सेवा करने के भाव तो 16 स्वर्ग तक
अभव्य – सिद्ध
जिनके अभव्यपने की सिद्धि हो चुकी हो जैसे ये बात सिद्ध हो चुकी है। सिद्धि एक शक्ति है, अपनी-अपनी पूर्णता को बनाये रखने के लिये।
अर्हम्
“अ” ⇒ अशरीरी। वर्णमाला की शुरुवात ‘अ’ से ही। “र्” ⇒ अग्नितत्व (“र्” बोलने से अग्नि पैदा होती है। हमारे विकारों को जलाने) “ह” ⇒
लेश्या वाले जीव
शुक्ल लेश्या वाले जीव … सबसे कम (असंख्यात)। पद्म लेश्या वाले ………….शुक्ल वालों से असंख्यात गुणे। पीत लेश्या वाले ……….. पद्म वालों से असंख्यात गुणे।
कर्म / जीव
कर्म निर्जीव, सजीव को नचाता कैसे है ? जैसे अलार्म बजने पर सजीव नाच जाता है। हालांकि अलार्म भरा जीव ने ही है। नाचना/ न
केवली समुद्घात में स्पर्शन
केवली समुद्घात में स्पर्शन – दंड में – लोक का असंख्यातवा भाग। कपाट में – दंड से संख्यात गुणा पर असंख्यात बहुभाग नहीं। प्रतर में
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