Category: पहला कदम
दोष
चल दोष → मंदिर हमने बनवाया है। मल दोष → शंकित/ भोगों की अकांक्षा। अगाढ़ दोष → शांति के लिये शांतिनाथ भगवान। मुनि श्री प्रणम्यसागर
द्रव्य लिंग
कुछ लोग मुनियों को द्रव्यलिंगी कह कर उनके प्रति अश्रद्धा करते हैं। बस जिनवाणी (वह भी नये पंडितों द्वारा रचित) पर श्रद्धा अधिक करते हैं।
कर्ता
मैं कर्ता हूँ – मन के स्तर पर विचारों का। वचन के स्तर पर शब्दों का। काय के स्तर पर कर्मों का। मुनि श्री मंगल
देवियाँ
वैसे तो मुख्य 6 देवियाँ हैं, तो पंचकल्याणकों में 8 क्यों दिखायी जाती हैं ? 6 देवियों के अलावा रुचिकवर, कुंडलवर पर्वतों (ढ़ाई द्वीप के
जीव
जीव कहने पर स्वयं की ओर ध्यान न जाना तत्व पर अश्रद्धान है। (खुद की सुरक्षा का ध्यान रखकर Drive करने वाले ही, सबकी रक्षा
दोष
यदि आचरण/ प्रवृत्ति करते समय दोष न लगें तो प्रायश्चित शास्त्रों की रचना करने का औचित्य ही न रहता। क्षु.श्री गणेशप्रसाद वर्णी जी
भेदविज्ञान
मैं काया में हूँ, पर काया के बिना भी रह सकता हूँ। शरीर की पीड़ा को पड़ौसी की पीड़ा मानना। निमित्त को दोष देना/ रागद्वेष
पुण्यानुबंधी
पुण्यानुबंधी-पुण्य वाले बहुत कम होते हैं, पापानुबंधी-पुण्य वाले बहुत ज्यादा। चिंतन
पुरुषार्थ
निगोद से मोक्ष जाने तक की राह में पुरुषार्थ की मुख्यता रहती है। पथरीली/ खतरनाक रास्ता चुन लें या पूर्व मोक्षगामियों का सरल रास्ता। ज्यादातर
मोक्ष / मार्ग
शांतिपथप्रदर्शक आदि शास्त्र मोक्षमार्ग/ व्यवहार को प्रधानता देते हैं, सिद्धांत ग्रंथ मोक्ष/ निश्चय को मुख्यता से विषय बनाते हैं। शांतिपथप्रदर्शक
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