Category: पहला कदम
राग और मोह
आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज कहा करते थे… राग और मोह दोनों ही आत्मा से भिन्न हैं। मोह अटकाव है जबकि राग भटकाव। मोह
भय
भय अपरिचित वस्तुओं, स्थान या व्यक्ति से ही होता है जैसे रस्सी को भी अनजाने में सांप मानने लगते हैं। सबसे अपरिचित आत्मा है इसीलिए
ज्ञानसार
शिष्य सालों तक गुरु से ज्ञान अर्जित करता रहा। गुरू → क्या समझे ? कुछ नहीं। गुरु → तो, सार को समझ लो, पुद्गल और
मानस्तंभ
मानस्तंभ एक नहीं, चारों दिशाओं में होने चाहिए। अन्यथा यदि भगवान का मुख उत्तर दिशा में है और मानस्तंभ यदि एक हुआ तो उत्तर में
मंदिर दर्शन
देवदर्शन का लक्ष्य क्या है ? पैसा ताकि सुविधाएं मिलें और अंत में शांति। हर व्यक्ति यही चाहता है, यहां तक कि डाकू भी। जीवन
भव्य मंदिर
क्या भव्य मंदिरों में भाव ज्यादा लगते हैं ? बड़ी-बड़ी टॉकीज जैसे राजमंदिर आदि में पिक्चर देखने के लिए ज्यादा टिकट देकर भी पिक्चर देखते
श्री राम
मुनिराज श्री राम के उदाहरण ज्यादा क्यों देते हैं ? सब दर्शनों में श्री राम को मान्यता प्राप्त है। जिनकी सबसे ज्यादा परीक्षाएं हुईं और
कर्म / पुरुषार्थ
रोग/ मुसीबतें तो पूर्व कर्मों से आती हैं। वर्तमान के पुरुषार्थ से कम/ समाप्त कर सकते हैं। पर हम दोष वर्तमान के निमितों को देते
दिगम्बर मुद्रा
जैन धर्म में सबसे प्राचीन होते हैं तीर्थंकर। हम जिसको रोल मॉडल बनाते हैं उनका बल्ला आदि कुछ अपने पास रखकर अपने को कृतार्थ फील
भगवान / भववान
आत्मायें दो प्रकार की → भगवान = भग (काम) + वान (नष्ट)। ये अल्प आरम्भ/ परिग्रह तथा शील पालन से। भववान → जो भवों में
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