Category: पहला कदम

काल

जो सत्ता, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, षटगुणी हानि-वृद्धि रूप हमेशा स्व तथा सब द्रव्यों में वर्तन कराता है, वही काल है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ

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मद / कषाय

मद और कषाय में किसी एक मद या एक कषाय आने पर आठों मद या चारों कषाय आ जाती हैं। मुनि श्री मंगलसागर जी

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कर्तादि

अहंकार मिथ्या है, क्योंकि सामने वाले का तिरस्कार उसके कर्मों के अनुसार ही होगा। ममकार –> मेरा कुछ है ही नहीं, फिर भी अपना मानना…

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आकाश

आकाश में गुरुत्वाकर्षण शक्ति हर जगह बनी हुई है, अलोकाकाश में भी। वह बादर तथा सूक्ष्म पदार्थों को भी प्रभावित करती है। विज्ञान मानता है

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जीवाश्च

जीवाश्च… यहाँ “च” से लेना –> जीवरुपी (संसार अवस्था में), अरूपी भी (स्वभाव की अपेक्षा,संसारी अवस्था में भी) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र –

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संस्कार

देव तथा नारकियों के संस्कार अगले भव में भी जाते हैं। अतः नरक से आये जीव पुण्य पर्याय में नहीं जाते। तीर्थंकर इसके अपवाद हैं,

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प्रायश्चित

‘प्रायः’ से सन्यास + ‘चित्त’ से मन (श्री रयणसार जी)। यानी मन में सन्यास भाव होंगे तभी प्रायश्चित्त होगा। कुली (बोझा ढोने वाला) नहीं, यात्री

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संहनन / देवगति

वज्र वृषभनाराच संहनन वाले सर्वार्थसिद्धि तक, वज्रनाराच संहनन + नाराच संहनन 9 ग्रैवेयक तक, अर्द्ध नाराच संहनन वाले 16 स्वर्ग तक, कीलक संहनन वाले 12

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पंचम काल

पंचम काल में ज्यादातर एक आँख वाले ही पैदा होते हैं, छठे काल में अंधे। पहली आँख की रोशनी से सम्यग्दर्शन/ अष्टमूल गुण पालन, दूसरी

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चारित्र

भगवानों के वर्धमान चारित्र होते हैं। पंचमकाल में हीयमान। पर आचार्य श्री विद्यासागर जी के समय में तो वर्धमान दिख रहा है ? आचार्य श्री

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मंगल आशीष

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October 22, 2024

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