Category: पहला कदम

आर्यिका जी 105

आर्यिकाओं के आगे 105 जबकि मुनियों के आगे 108 क्यों ? आर्यिकाओं में मुनियों की अपेक्षा तीन गुण कम होते हैं – दिगम्बरत्व अस्नान खड़े

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ख़ूबियाँ / ख़ामियाँ

पर्याय दृष्टि से ख़ामियाँ दिखती हैं। ख़ामियाँ बताने पर गौरवान्वित महसूस करें कि आपकी पर्याय को आदर दिया जा रहा है। द्रव्य दृष्टि से ख़ूबियाँ

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दर्शनोपयोग

आचार्य श्री विद्यासागर जी सम्यग्दर्शन से ज्यादा दर्शनोपयोग को महत्व देते थे। मुनि श्री सौम्य सागर जी (प्रवचन- 15 फ़रवरी)

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स्थितिकरण

क्या स्थितिकरण स्वयं का भी हो सकता है ? योगेंद्र स्थितिकरण स्वयं का भी हो सकता है लेकिन मुख्यतः दूसरों का स्थितिकरण ही करा जाता

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लोकमूढ़ता

लोकमूढ़ता में ऐसे सोच भी आते हैं जैसे इंग्लिश न आने से हम बैकवर्ड हो जाते हैं आदि। मुनि श्री सौम्य सागर जी (प्रवचन- 15

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दर्शन

“दर्शन” शब्द के बहुत अर्थ होते हैं… देखना, श्रद्धा, मत(जैसे जैन दर्शन)। कहा गया है “चारित्र (भावलिंग) से भ्रष्ट तो सिद्धि को प्राप्त कर सकता

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मुनियों का नामकरण

दीक्षा के समय मुनियों का नाम क्यों बदला जाता है ? नामकरण मुनि के लिए नहीं होता, देखने वालों और शिष्यों के लिए होता है

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प्रवचन-वत्सलत्वम्

प्रवचन को धारण करना प्रवचन-वत्सलत्वम् कहलाता है। यह चौथे गुणस्थानवर्ती श्रावकों से लेकर मुनियों तक अपनी-अपनी भूमिका में धारण किया जाता है। वात्सल्य श्रावकों और

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मुनि श्री शिवभूति

मुनि शिवभूति जी को णमोकार मंत्र का भाव/ अर्थ तो आता था पर ज्ञानावरण कर्म के उदय से क्रमवार मंत्र नहीं याद था। मुनि श्री

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मंगल आशीष

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