Category: पहला कदम
पात्र/अपात्र को दान
सुपात्र को दिया दान, उन जैसा बनाता है, अपात्र को दिया दान पीछे से सहारा/सहायता देता है । जैसे भगवान पार्श्वनाथ ने सबसे बड़े पापी/जिसको
भाषा समिति
ब्र. संजय ने आचार्य श्री विद्यासागर जी से सात प्रतिमाओं का नियम लिया । आ. श्री ने पूछा – कुंए का पानी लेते हो ?
समाधि
समाधि में मौत कोई बहाना नहीं ढ़ूंढ़ती है । शरीर को विकृत करके नहीं छोड़ते, इसलिये अगले भव में सुंदर शरीर मिलता है । मन
शोक में चिंतन
शोक में भगवान को अशोक वृक्ष के नीचे बैठे ध्यान/चिंतन करें । उस वृक्ष का नाम ही अ-शोक है, ऐसा ध्यान करने से शोक दूर
गुरु-पूर्णमाँ / विपरीतता
गुरु-पूर्णमाँ… पंक नहीं पंकज बनूँ, मुक्ता बनूँ न सीप, दीप बनूँ जलता रहूँ, गुरु पद पद्म समीप. आचार्य श्री विद्या सागर जी ———————————————– विपरीतता… भोगभूमि
अभीक्ष्ण-संवेग
दु:खों में संसार से सब डरते हैं, कोरोना में देखा – संसार निस्सार लगने लगा । पर सुख में ? जब सुख में भी संसार
परिवर्तन
पंचपरावर्तन से बचने के लिये जीवन में परिवर्तन आवश्यक है । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
नाम में शक्त्ति
“ॐ” में एक नहीं, अनंत-पंचपरमेष्ठी, तथा “अर्हं” में अनंतकेवलज्ञानी समाहित हैं । तो इन/ऐसे नामों में अनंत शक्त्ति होगी या नहीं ? मुनि श्री प्रणम्यसागर
दु:ख में क्रंदन
दु:ख में जितनी जोर-जोर से रोओगे/चिल्लाओगे तो Pipeline/सत्ता में उतनी दूर-दूर के असाता कर्म बुलाहट सुनकर/जानकर आपके पास चले आयेंगे/उदीरणा कर जायेंगे । मुनि श्री
भाव
१. आगम-भाव : जैसे मनुष्यपना >> सामान्य विषय, किसी का पिता होगा पर मेरे अनुभव में नहीं । २. नो आगम-भाव : मनुष्यपना + पितापना
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