Category: पहला कदम
आर्त/रौद्र ध्यान
घर का कोई कार्य/ आयोजन आपकी इच्छानुसार न हो, तो दु:ख होता है। यदि इच्छानुसार हो, तो फूले नहीं समाते हैं। पहली स्थिति में यही
वैयावृत्ति
वैयावृत्ति से – 1. समाधि की प्राप्ति 2. प्रसन्नता, सो अंतरंग तप हुआ 3. निर्विचिकित्सा 4. प्रभावना/प्रवचन वात्सल्य आचार्य श्री विद्यासागर जी – साधर्मी =
धर्मात्मा
जो स्कूल जायेगा उसे विद्यार्थी कहेंगे, न जाने वाले को नहीं । धर्मात्मा वह जो मंदिर जायेगा । स्कूल जाने वाले जो अभ्यास नहीं करते
कृत्रिम-अकृत्रिम
प्राकृतिक नियम है – हर चीज अपनी विरोधी चीज के साथ रहती है, कृत्रिम के साथ अकृत्रिम, नश्वर के साथ अनश्वर । यदि संसार में
मूर्ति पर फूल
मूर्ति पर फूल निहित हिंसा की वजह से नहीं चढ़ाते। पर अज्ञानवश चढ़ाये हैं, तो इससे मूर्ति दूषित नहीं हो जाती: मिथ्यात्व का दोष नहीं।
उपाध्याय
1. उपाध्याय पद दीक्षित गुरु ही देते हैं । 2. अपने संघ के मुनियों को ही पढ़ाते हैं । 3. वर्तमान के अपने तथा दूसरे
योग / भोग
मित्र/शत्रु, सुख/दुख, प्रशंसा/निन्दा, सोना/मिट्टी, जीवन/मरण में से… भोगी… मित्र, सुखादि को ग्रहण करना चाहता है, क्योंकि जन्मजन्मांतरों के संस्कार हैं, इसलिये बिना प्रयास के भोगता
समता
समता तो गृहस्थ तथा साधु दोनों धारण करते हैं; श्रावक सभ्यता के नाते/ सामाजिकता/ स्वार्थपूर्ति के लिये, बाह्य समता रखता है, साधु खुद के नाते/
कर्मोदय
कर्म उदय से पहले मन में आता है । वही अच्छे/बुरे विचार बनाता है जैसे गला ख़राब होने से पहले खट्टी/ठंडी चीजें खाने का मन
केवलज्ञानी का खून
सामान्य केवली का खून सफेद नहीं होता । सिर्फ तीर्थंकरों का होता है, क्योंकि खून सफेद होना जन्म का अतिशय हैं, केवलज्ञान का नहीं ।
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