Category: पहला कदम
गणधरों से शंका समाधान
समवसरण में सब गणधर अलग-अलग जगहों पर चारों ओर बैठते हैं ताकि उनकी तरफ के जीव अपनी-अपनी तरफ वाले गणधरों से प्रश्न कर सकें ।
आत्मा का ज्ञान
निश्चय से ज्ञान अमूर्तिक है, पर आज हमारा ज्ञान कर्म के आवरण के कारण मूर्तिक है । तो मूर्तिक ज्ञान से अमूर्तिक आत्मा का अनुभव
विषय / इन्द्रियाँ
आखिरी इन्द्रिय सबसे ज्यादा ताकतवर होती है जैसे चींटी की घ्राण, पतंगे की चक्षु । ये सब अज्ञानी जीव इस इन्द्रिय को सबसे ज्यादा विषयों
कृतत्व / भोक्तृत्व / स्वामित्व
आचार्य श्री विद्यासागर जी से एक व्यक्ति ने पूछा – सम्यग्दृष्टि के कर्तृत्व, भोक्तृत्व और स्वामित्व भाव तो हो नहीं सकते ? आचार्य श्री –
लौकिक / अलौकिक
लौकिक = लोक से संबधित सामान्यतः लौकिक का ही ज्ञान अनुभव में आता है, अलौकिक का नहीं। उसे तो जानते / मानते ही नहीं। अलौकिक
शादी में आहार
शादी वाले दिन मुनि को उस घर में आहार नहीं लेना चाहिये, क्योंकि उस घर में सामूहिक भोजनादि में बहुत आरंभ हिंसा होती है ।
नारकियों का अवधिज्ञान
नारकियों के अवधिज्ञान की पहुँच बहुत कम होती है, अपनी दुश्मनी निभाने लायक । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
धर्म/गुरु/देव
सच्ची परिभाषायें – धर्म – जो दया से विशुद्ध (क्योंकि धर्म तो सब जीवों को सुख देने वाला होता है) गुरु – सर्व परिग्रह त्यागी
चारित्र
ज्ञान के ऊपर से मोह का पर्दा हटाने को चारित्र कहते हैं । इसलिये चारित्र का पालन घर में रहकर नहीं हो सकता, हाँ !
मूर्ति के अंगूठे पर निशान
मूर्ति के अंगूठे पर निशान दिखता क्यों नहीं है ? यह निशान सिर्फ सौधर्म इन्द्र को दिखता है और उनके देख लेने के बाद गायब
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