Category: पहला कदम
राग / वीतराग
राग के साथ अधिक दिन रह नहीं सकते, जैसे दुल्हन श्रंगार अधिक दिन नहीं रख सकती । बाद में तो राग को बस ढोना होता
जीव उत्पत्ति
पसीने वाले भाग को यदि कवर कर दिया जाये तो उसमें भी (सम्मूर्छन) जीवों की उत्पत्ति होने लगती है । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
वीरासन
जिस आसन में हनुमान जी को(वैदिक परम्परा में) मूर्ति में बैठे दिखाते हैं, वह वीरासन है । मुनि श्री सुधासागर जी
निश्चय / व्यवहार
व्यवहार सापेक्ष है, पर्याय की अपेक्षा । निश्चय को भी सापेक्ष कह सकते हैं, पर द्रव्य की अपेक्षा । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
स्त्री / मोक्ष
श्वेताम्बर मंदिरों में भी मल्लिकुमार को स्त्री रूप में नहीं दिखाया है । वे भी मानते हैं कि सम्यग्दृष्टि अगले भव में स्त्री पर्याय में
मिथ्यादर्शन
वर्तमान सम्बंधों (चेतन तथा अचेतन के साथ) को निभाना मिथ्यादर्शन नहीं, उनके साथ त्रैकालिक सम्बंध मानना मिथ्यादर्शन है । मुनि श्री सुधासागर जी
माया
वैदिक मत में संसार माया है यानि माया बाहर में है, जैन मत में माया हमारे अंदर है । इसलिये कहा जाता है कि संसार
मिथ्यात्व
मिथ्यात्व का आशय “झूठा” नहीं, बल्कि विपरीत अभिनिवेश है । मुनि श्री सुधासागर जी
मन / आत्मा
मन खिड़की है (अंदर से आत्मा को संसार दिखाने, बाहर से आत्मा को देखने/समझने के लिये) । आत्मा देखने वाली है । मुनि श्री सुधासागर
सम्यग्दर्शन
क्षयोपशम सम्यग्दर्शन से प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन में नहीं जाते । मिथ्यात्व, द्वितीयोपशम, क्षायिक सम्यग्दर्शन में जा सकते हैं । मिथ्यात्व से अंतरमुहूर्त में वापस क्षयोपशम सम्यग्दर्शन
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