Category: पहला कदम
सम्यग्दर्शन
क्षयोपशम तथा द्वितीयोपशम सम्यग्दर्शन, अंतरमुहूर्त के बाद दुबारा हो सकता है । मुनि श्री सुधासागर जी
क्षेत्र का प्रभाव
निगोदिया पर क्षेत्र का प्रभाव नहीं पड़ता । मुनि श्री सुधासागर जी (यदि हम पर नहीं पड़े तो, हम क्या हैं और क्या बनने की
मतमतांतर
मतमतांतर भरत/ऐरावत तथा विदेह क्षेत्र में भी होते हैं । पर हुंडा की वज़ह से भरत/ऐरावत में देव, शास्त्र, गुरु भी भिन्न भिन्न हो जाते
होली
देव अष्टानिका की अखंड पूजा के बाद 9वें दिन नंदीश्वर-द्वीप की परिक्रमा करके भक्ति में ऐसे घुल-मिल जाते हैं कि भक्ति के रंग बाहर दिखने
ऋषि-मंडल विधान
ऋषि-मंडल विधान में ऋषियों की पूजा तो ठीक है पर इसमें मिथ्यात्व बहुत है । मुनि श्री सुधासागर जी
एकांत-मिथ्यात्व
पांचों मिथ्यात्व में सबसे घातक एकांत-मिथ्यात्व है, क्योंकि इसमें कषाय की अधिकता रहती है । मुनि श्री सुधासागर जी
णमोकार/अरहंत
णमोकार मंत्र उपकारी मंत्र है (इसे सिद्ध नहीं किया जाता है) । इसलिये पहले अरहंत को लिया, जिन्होंने हम सबके ऊपर परम-उपकार किया है ।
योग्यता
त्रैकालिक योग्यता से तात्कालिक योग्यता आती है जैसे आटे से रोटी बनना । आचार्य श्री विशुद्धसागर जी
लिंग और धर्म
बाह्य लिंग मात्र होने से धर्म की प्राप्ति नहीं, पर बिना बाह्य लिंग के भी धर्म की प्राप्ति नहीं होती है । श्री अष्टपाहुड़ –
क्षयोपशम-भाव
ज्ञानावरणादि चारों घातिया कर्मों के क्षयोपशम होने पर, गुणों के अंश रहने से जो भाव आते हैं, उन्हें क्षयोपशम-भाव कहते हैं । पं. रतनलाल बैनाड़ा
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