Category: पहला कदम
अनुजीवी
अनुजीवी गुण, जो सदैव आत्मा के साथ रहते हैं, पूर्ण या ढ़के हुये जैसे ज्ञानावरणादि । मुनि श्री सुधासागर जी (“अनु” यानि छोटा, वह तो
अनाहार / अनाहारक
अनाहार – बिना आहार । अनाहारक – आहार न लेने की स्थिति जैसे एक समय से अधिक की विग्रहगति में । चिंतन
द्वैत / अद्वैत
द्वैत….. दो का अलग-अलग अस्तित्व स्वीकारना जैसे आत्मा और शरीर । अद्वैत… दो का एक अस्तित्व मानना जैसे अपनी आत्मा और शरीर को एक मानना
कषाय
क्रोधादि चारों कषाय का उदय तो हर समय रहता है पर हानि तभी होती है जब उनमें प्रवृत्ति/उपयोग लग जाता है । विचार यह करना
शील
शील की 9 बाढ़ हैं – (मन, वचन,काय) × (कृत, कारित, अनुमोदना) (10 धर्मों में, पहले 9 धर्मों को भी शील/ ब्रम्हचर्य की बाढ़ कहा
छत्र चढ़ाना
तीर्थ-स्थानों पर छत्रों को बार बार चढ़ाने में दोष नहीं है क्योंकि वे स्थापित किये जाते हैं जैसे मूर्ति को स्थापित (अभिषेक के बाद) किया
अश्रद्धावान
अश्रद्धावान/अजैन को धर्म की क्रियायें नहीं, जैन-धर्म के सिद्धांत बतायें । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
विधान
विधान मंदिर में ही करना चाहिये, घर में पाठ कर सकते हैं क्योंकि विधान भगवान की साक्षी में ही होता है । विनायक यंत्र रखकर
मूलगुण
मुनि और अरहंत भगवान के मूलगुण हर समय क्रियारूप नहीं, संकल्परूप होते हैं । मुनि श्री सुधासागर जी
नरक में कर्म
नरक में इतने ख़राब भाव व द्रव्य हिंसा भी करता है तो पापकर्म कटेंगे कैसे ? पाप क्रियाओं की अपेक्षा दु:ख सहता ज्यादा है; अतः
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