Category: पहला कदम
सकारात्मकता
नकारात्मक सोच कर्म के उदय से/ औदयिक भाव। सकारात्मक क्षायोपशमिक भाव, इसके लिये पुरुषार्थ करना पड़ता है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
अभक्ष्य
अभक्ष्य सेवन से निकाचित कर्मबंध होता है। इसलिए बच्चों को णमोकार मंत्र याद कराने से पहले 8 अभक्ष्यों (मांस, मदिरा, मधु, 5 उदम्बरों) का त्याग
निर्वाण दिवस
भावना भायें → मैं ऐसा बनूँ। प्रभावना → सब जानें/ वैसे बनें। सिर्फ़ महावीर भगवान का मनाने का नुकसान भी → जैन धर्म 2600 वर्ष
ज्ञान / अनुभूति
ज्ञान तो ख़ुद भी पढ़कर ले सकते हो पर अनुभूति तभी जब उनसे ज्ञान लिया हो जिन्होंने उस ज्ञान की अनभूति की हो। मुनि श्री
ध्यान / चिंतन
ध्यान तदरूप जैसे पिंडस्थ ध्यान में मेरी आत्मा सिद्ध रूप। वर्तमान पर्याय का ध्यान नहीं होता। मुनि भी साधु परमेष्ठी के ध्यान में, अपने से
भगवान के मस्तिष्क
भगवान के मस्तिष्क नहीं होता। दिमाग तो शरीराश्रित होता है, सिद्ध के शरीर नहीं (अरिहंत के Inactive)। मस्तिष्क नहीं सो राग द्वेष नहीं। मुनि श्री
निमित्त-नैमित्तिक संबंध
नरक में शुभक्रिया करना भी चाहो तो भी अशुभ हो जाती है। शराब का नशा पुलिस की पिटाई से उतर जाता है। आयुर्वेद में उत्तर/
सर्वावधि / मन:पर्यय
जब सर्वावधिज्ञान एक परमाणु तक को जानता है, तो मन:पर्यय ज्ञानी उसका अनंतवा भाग कैसे जानेगा ? आशय द्रव्य से नहीं, पर्याय से लेना। पर्याय
मन
नोइंद्रिय/ अंगोपांग नामकर्म के उदय से मन बनता है। हृदय स्थल पर होने के कारण ही मन को हृदय और हृदय को मन कहने लगते
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