Category: पहला कदम

पाप

पाप तो बुरा ही है → निश्चय से, सापेक्षत: भी बुरा है → व्यवहार से। चिंतन

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द्रव्य

द्रव्य गुणों को हमेशा बनाये रखता है, इसलिए नित्य है। साधारण/ सामान्य गुण = अस्तित्व, द्रव्यत्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्व* आदि। विशेष गुण = जैसे जीव में

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वस्तु-स्वभाव: धर्म:

वस्तु का स्वभाव ही धर्म है*। पर स्वभाव तो बदलता रहता है तो क्या धर्म भी बदलता रहता है ? धर्म 2 प्रकार का –>

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जीवाश्च

सूत्र… यानी जीव भी द्रव्य हैं। “च” से जीव रूपी व अरूपी भी। बहुवचन का प्रयोग –> एक जीव नहीं वरना “एको ब्रह्म” हो जायेगा।

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सापेक्षवाद

द्रव्य वह जो अंतरंग तथा बाह्य निमित्तों के माध्यम से अपने अस्तित्व को बनाये रखे, चाहे वह शुद्ध द्रव्य ही क्यों न हो। परिणमन दूसरे

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समय

जो लोग कहते हैं कि समय नहीं है, वे आत्मा के अस्तित्व को नकारते हैं। क्योंकि “समय” तो “आत्मा” को कहते हैं। विद्वत श्री संजीव

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देवों में गति

देवों में पंचेंद्रिय संज्ञी ही जाते हैं। असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्तक –> भवनत्रिक में ही। सम्यग्दृष्टि देवों में ही, पांचवे गुणस्थान वाले 16 स्वर्ग तक। मुनि

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कर्म-फल

रमेश ने मित्र सुरेश से 2000 रु. उधार लिये। रमेश के मन में बेईमानी आ गयी। सुरेश कर्म-सिद्धांत का विश्वासी, कहता –> लेकर जायेगा नहीं!

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उत्तम क्षमा धर्म

एकेन्द्रिय जीवों से क्षमा मांगने/ धारण करने के कारण —- 1. उनके बहुत उपकार हैं। उनके बिना हमारा जीवन चल नहीं सकता। 2. कुछ वनस्पतिकायिक

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कर्म-बंध/उदय

जितना तीव्र कषाय के साथ कर्मबंध होगा उतनी देर से उदय में आयेगा, इसीलिए पापी लोग जो पाप तीव्रता के साथ करते हैं उनका उदय

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मंगल आशीष

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