Category: पहला कदम

प्राण

निश्चय और व्यवहार से केवली भगवान के कितने प्राण होते हैं ? निश्चय से प्राण नहीं बस चेतना होती है । व्यवहार से चार प्राण

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स्व-पर

जो “पर” में लीन, वह स्वयं से विलीन हो जाता है । जो “स्वयं” में लीन, उसके कर्म विलीन हो जाते हैं । आचार्य श्री

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सम्यग्दृष्टि का भय

निचले गुणस्थानों में सम्यग्दृष्टि को भय तो होगा पर अनंतानुबंधी वाला नहीं । जैसे सांप से डरेगा, पर मारेगा नहीं । आर्यिका विज्ञानमति माताजी

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एक इन्द्रिय

वनस्पति की तरह चारों एक-इन्द्रिय बादर तथा सूक्ष्म भी होते हैं । जैनेन्द्र सिध्दान्त कोष

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शांतिनाथ आदि की प्रतिमायें

शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ आदि भगवानों की बड़ी प्रतिमायें प्राय: खड़गासन ही क्यों ? तीनों की पद्मासान प्रतिमाओं के लिये गर्भग्रह कितना बड़ा चाहियेगा ! मुनि

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तप

गन्ने में मिठास तो होती है पर उस मिठास को निकालने के लिये उसे पिलना पडता है । श्रावकों को देव, शास्त्र, गुरु की पूजा,

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वज्रवृषभनाराच संहनन

ऐसे संहनन के धारक यदि गिर जांय तो आसानी से फ्रेक्चर नहीं होगा ? प्रश्न – आसानी क्यों कहा ? विशेष कारणों/परिस्थितियों में हो भी

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श्रुत-रचना

अंतिम श्रुत केवली आचार्य श्री भद्रबाहु ने शास्त्रों की रचना खुद क्यों नहीं की ?———————————-पुष्किन श्रुत केवली का ज्ञान अथाह होता है, उसे कलमबद्ध करना

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दिव्यध्वनि

दिव्यध्वनि तो भगवान की, फिर उसे देवकृत अतिशय क्यों कहा ? क्योंकि देवता दिव्यध्वनि को 12 कोठों में सुचारु रूप से सुनाने में सहायक होते

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मंगल आशीष

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