Category: पहला कदम

रमण

जहाँ रमण नहीं, वहाँ स्मरण । आचार्य श्री वसुनंदी जी सम्यग्दृष्टि देव रमण में भी शुभ स्मरण तथा मिथ्यादृष्टि शुभ रमण में भी अशुभ स्मरण

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मध्यलोक

नीचे सात पृथ्वीयें, ऊपर अष्टम, हमारी कौन सी पृथ्वी ? मध्यलोक, प्रथम चित्रा पृथ्वी के ऊपर है । सुमेरू आदि इसी के उठे भाग हैं

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अनुयोग

चार अनुयोग का कथन पहली बार आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने किया था । द्वादशांगादि में प्रथमानुयोग तो आता है अन्य तीन का नाम नहीं ।

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देव-दर्शन

प्रायः कहा जाता है …. देव-दर्शन अनंत बार किये होंगे, पर उससे क्या हुआ ? आज देव-दर्शन ऐसे करो कि जैसे पहली बार कर रहे

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अनुभाग/स्थिति

अनुभाग यदि प्रबल हो तो वह स्थिति को संभाल लेता है, चींटी की कार के नीचे आने पर भी आयु की स्थिति समय से पहले

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सहयोग

क्या पार्श्वनाथ भगवान के पुण्य कम थे, जो इंद्र देवता सहायता करने नहीं आये ? पुण्य तो घने थे, 63 ऋद्धियाँ थीं, पर सहायता करने

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भव्य

हम कौन से भव्य ? क्या हम भगवानों के समवसरण में गये थे ? जरूर गये थे, वरना आज धर्म के संस्कार नहीं आते ।

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जीव / आत्मा

वैसे तो दोनों पर्यायवाची हैं (भावात्मक दृष्टि से) पर व्यवहार में जीव का प्रयोग ही होता है – जैसे जीवों की रक्षा, आत्मा की रक्षा

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चक्रवर्ती का मान

चक्रवर्ती का मान वृषभाचल पर्वत पर नाम लिखने की जगह न मिलने से खंडित नहीं हुआ था, वरना वैराग्य न हो जाता ! हाँ !

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चारित्र धारण

जिसने अपने बाल स्वंय नहीं उखाड़े, उसके बालों को दूसरे उखाड़ेंगे । इस जन्म में मुनि नहीं बने/बनने के भाव नहीं रखे, तो अगले भव

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मंगल आशीष

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