Category: पहला कदम
निर्जरा
पूजा से भी निर्जरा होती है, पर उससे ज्यादा स्तुति, और-ज्यादा जप, सबसे ज्यादा ध्यान से । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
21.1.21
इक्कीस = इक ईस पहला ईस = अरिहंत दूसरा ईश = सिद्ध दोनों के बीच “1”, मैं अकेला, ईश्वरीय गुणों/ शक्तियों से रक्षित । चिंतन
उपादान / कर्म / निमित्त / पुरुषार्थ
दीपक के उपादान को प्रकाशित करने में – घी – कर्म है, बाती – निमित्त, चिमनी – पुरुषार्थ है । मुनि श्री सुधासागर जी
श्रावक/श्रमण
“मोही श्रमण से निर्मोही श्रावक अच्छा” इसलिये नहीं कहा कि ऐसा श्रावक मोक्षमार्गी हो गया बल्कि श्रमण को कहा कि तुम भी मोक्षमार्गी नहीं रहे
काललब्धि
किसी भी लब्धि के लिये काल (समय) के साथ साथ योग्यता भी आवश्यक है तथा पुरुषार्थ भी । देवों में आहार/श्वासोच्छवासादि सब निर्धारित समय पर
मोक्षमार्ग
आत्मा को दु:खों से दूर रखने/मुक्त करने का मार्ग । दु:ख दूर होते हैं, पापों से दूर रहने से । पाप करते समय तो अच्छे
विचार
1. विचारों का आना – कर्मोदय से, ये प्राय: गंदे ही होंगे(क्योंकि संस्कार बहुतायत में गंदे ही हैं), और उन्हें रोकना भी कठिन है, वे
देव-दर्शन
देव-दर्शन अनंत बार किये होंगे, पर उससे क्या ! आज ऐसे करो जैसे पहली बार कर रहे हो (अद्याष्टक स्त्रोत) । ऐसा दर्शन, सम्यग्दर्शन में
अणु
वैसे तो सब अणु एक से ही होते हैं पर शक्ति-अंश की अपेक्षा उनमें जघन्य/उत्कृष्टता घटित होती है । आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी
निमित्त
अनंत शक्तिवान सिद्ध भगवान भी पूर्व शरीर के निमित्त से (जो सबसे हीन शक्ति वाला होता है), अनंतकाल तक उसी आकार में बने रहते हैं
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