Category: पहला कदम

निमित्त

अनंत शक्तिवान सिद्ध भगवान भी पूर्व शरीर के निमित्त से (जो सबसे हीन शक्ति वाला होता है), अनंतकाल तक उसी आकार में बने रहते हैं

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कलिकाल

कलिकाल >> कलि = झगड़ा (का) काल आचार्य श्री विद्यासागर जी

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प्रासुक

छेदन-भेदन से भी प्रासुक । सोंफादि को पीसने से/ छिलका हटने से, इस अपेक्षा प्रासुक से कहा है । फलों के लिये ये विधि नहीं

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सिद्धि

1. मंत्रों की सिद्धि, मन की इच्छाओं की पूर्ति (मिथ्यादृष्टि द्वारा) के लिये ही नहीं, मन को साधने (एकाग्रता) के लिये/ सम्यग्दृष्टि के लिये भी

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वस्त्रादि

वस्त्रादि रौद्र-ध्यान के प्रारूप हैं । (वस्त्रादि बहुत सी समस्याओं के समाधान के साथ साथ कारण भी हैं ।) आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मोह

मोह… पदार्थों का अयथार्थ ग्रहण करना । दूसरों के परिणमण को अपना परिणमण मानना । दूसरों में एकत्व बुद्धि होना । कर्तव्य करते हुये अंतरंग

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मुनि की मूर्ति

मुनियों की कौन सी अवस्था की मूर्ति बनायें ? युवावस्था की या वृद्धावस्था की ? पेट बाहर निकले/ चेहरे पर झुरिंयों सहित या सुडौल/ सुंदर

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बीस तीर्थंकर

पुराने आचार्यों ने 20 तीर्थंकरों की भक्ति नहीं लिखी । भरत ने 72 जिनालय बनाये पर बीस तीर्थंकरों के नहीं । पुरानी प्रतिमायें भी नहीं मिलतीं है

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मंगल आशीष

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