Category: पहला कदम
सत्य
सत्य तो मुख्यतः ख़ुद के साथ बोलने के लिये होता है । जैसे सबके लिये – “ये मेरा मकान है”, अपने लिये – “मकान किसका
दर्शन / चारित्र
सम्यग्दृष्टि सत्य को जान लेता है पर अविरत अवस्था में, उस पर चल नहीं पाता । चारित्र-मोहनीय मंद/समाप्त होने पर अनुसरण भी करने लगता है
अर्थ/व्यंजन पर्याय
सिद्धों में… व्यंजन-पर्याय उनके आकार और प्रदेशत्व की अपेक्षा, अर्थ-पर्याय अगुरुलघु गुण से ।
तत्त्वार्थसूत्र
श्रावकों के लिये मुख्यत: सातवें अध्याय तक, दान की चर्चा करके समाप्त । आगे मुख्यत: मुनियों के लिये, हाँ ! श्रावक अभ्यास कर सकते हैं
विकार / संयम
घर/संसार है तो गंदगी तो निकलेगी ही । यदि निकासी के लिये व्यवस्थित नाली नहीं बनाई तो गंदगी घर/संसार में चारौ ओर फैलेगी ही जैसे
अभिषेक/कपड़े
घर से नहाकर मंदिर में धोती दुपट्टा पहनकर अभिषेक करने में बुराई नहीं है । मुनि श्री सुधासागर जी
संलेखना बोध
तुम लोग मेरी इस पर्याय की अंतिम अवस्था देख रहे हो, मैं संसार की अंतिम पर्याय की ओर दृष्टि ।
विषय-भोग
विषय-भोग की तुलना हलाहल से की गयी है । विषय-भोग सुमेरु पर्वत (सबसे बड़ा/हिमालय से भी बड़ा), हलाहल (सबसे बड़ा विष) राई । आचार्य श्री
मोह
अपने और अपनों से मोह में इतना दोष नहीं… सीता भी तो राम से बहुत मोह करतीं थीं, तभी तो स्वर्ग से राम की तपस्या
दोष निवारण
प्रतिक्रमण = पूर्व के दोषों की स्वीकृति/ पश्चाताप, आलोचना = वर्तमान के दोषों की; प्रत्याख्यान = आगे दोष न करने का संकल्प । कुंद कुंद
Recent Comments