Category: पहला कदम
भावना / योग्यता
भावना से मुनि पद तक पा सकते हैं पर योग्यता(वज्रवृषभ नाराच संहननादि) बिना मोक्ष नहीं। तीर्थंकर की सेवा करने के भाव तो 16 स्वर्ग तक
अभव्य – सिद्ध
जिनके अभव्यपने की सिद्धि हो चुकी हो जैसे ये बात सिद्ध हो चुकी है। सिद्धि एक शक्ति है, अपनी-अपनी पूर्णता को बनाये रखने के लिये।
अर्हम्
“अ” ⇒ अशरीरी। वर्णमाला की शुरुवात ‘अ’ से ही। “र्” ⇒ अग्नितत्व (“र्” बोलने से अग्नि पैदा होती है। हमारे विकारों को जलाने) “ह” ⇒
लेश्या वाले जीव
शुक्ल लेश्या वाले जीव … सबसे कम (असंख्यात)। पद्म लेश्या वाले ………….शुक्ल वालों से असंख्यात गुणे। पीत लेश्या वाले ……….. पद्म वालों से असंख्यात गुणे।
कर्म / जीव
कर्म निर्जीव, सजीव को नचाता कैसे है ? जैसे अलार्म बजने पर सजीव नाच जाता है। हालांकि अलार्म भरा जीव ने ही है। नाचना/ न
केवली समुद्घात में स्पर्शन
केवली समुद्घात में स्पर्शन – दंड में – लोक का असंख्यातवा भाग। कपाट में – दंड से संख्यात गुणा पर असंख्यात बहुभाग नहीं। प्रतर में
तीर्थंकर मुनि के आहार
तीर्थंकर मुनि अधिक से अधिक 6 माह के उपवास का नियम लेते हैं जैसे आदिनाथ भगवान ने लिया था। आहार, श्रावकों को सिखाने के लिये
लब्धियां
क्षयोपशम लब्धि – कमों की अनुभाग शक्ति घटने लगती है। विशुद्ध लब्धि – क्षयोपशम बढ़ाने से। देशना लब्धि – विशुद्ध भावों से देशना ग्रहण करना।
सम्यग्दर्शन
सम्यग्दर्शन 5 लब्धियों से होता है। करणानुयोग की अपेक्षा → 7 कर्म प्रकृतियों के क्षय/ क्षयोपशम/ उपशम से। चरणानुयोग की अपेक्षा → अच्छे/ सच्चे आचरण
प्रमाद
तीर्थंकरों में प्रमाद कैसे समझें, उनके तो वर्धमान चारित्र होता है? तीर्थंकर आहार के लिये जब उठते हैं तब छठवाँ गुणस्थान होता है, यानी प्रमत्त
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