Category: पहला कदम
उपभोग
सामान्य परिभाषा – बार बार भोगना। आध्यात्मिक परिभाषा – हर इन्द्रिय सम्बन्धित जैसे मोबाइल को बार-बार देखना/ सुनना। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थसूत्र- 2/53)
सूक्ष्म एकेन्द्रिय
सूक्ष्म एकेन्द्रिय का उदाहरण –> वायुमण्डल में गैसें। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी (जिज्ञासा समाधान – 7. 5. 22)
Short Form
हम सब को, हर चीज़ का Short Form बहुत प्रिय है, उसकी Demand बहुत है। पंच परमेष्ठी का Short Form है… “ॐ नमो नम:” आचार्य
मोक्षमार्गी
अविरत सम्यग्दृष्टि –> कारण-मोक्षमार्गी। रत्नत्रयधारी ही —–> कार्य-मोक्षमार्गी। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
अर्थ पर्याय
अर्थ पर्याय दो प्रकार की – 1. विभाव अर्थ पर्याय – मिथ्यात्व/ कषाय से। 2. स्वभाव अर्थ पर्याय -अगुरुलघु गुण से। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर
सिद्धों में इन्द्रिय-ज्ञान ?
स्पर्श, रसादि सिद्धों तक पहुँचते तो नहीं हैं पर उनको सब इन्द्रिय-ज्ञानों का ज्ञान होता है। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी (जिज्ञासा समाधान- 29.4.22)
स्वर्ग में लेश्या तथा गमन
दूसरे स्वर्ग की देवियाँ जो १६वें स्वर्ग में जातीं है उनकी लेश्या शुक्ल ही होती है। लेकिन एक स्वर्ग से ऊपर के स्वर्गों में कोई
मरणांतिक समुद्घात
इसमें आत्मप्रदेश जन्मस्थान जाकर आ जाते हैं। स्थान देखना नहीं कह सकते क्योंकि आंखें तो जातीं नहीं हैं। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी (शंका समाधान)
सम्मेद शिखर वंदना
सम्मेद शिखर वंदना पुण्योदय से नहीं, पुण्य फल के त्याग से होती है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
क्षुधा रोग विनाशनाय
क्षुधा रोग विनाशनाय का अर्घ चढ़ाते समय “भूख समाप्त हो”, ऐसा ही नहीं, “पर” द्रव्यों के प्रति आसक्ति/ मूर्छा का विनाश हो, ऐसे भाव भी
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