Category: पहला कदम
अज्ञान
1. जब तक पूरा ज्ञान (केवलज्ञान) प्रकट न हो जाय, यानी 1 से 12 गुणस्थानों में अज्ञान/ औदयिक भाव रहेगा। यह सम्यग्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि दोनों
ध्यान
अंतराय होने पर श्रावक रोने लगा। आचार्य श्री विद्यासागर जी… यह आर्तध्यान नहीं धर्मध्यान है।
अचेतन का उत्थान
चेतन के उत्थान में अचेतन के उत्थान की महत्वपूर्ण भूमिका है। तभी तीर्थक्षेत्रों/ मन्दिरों के जीर्णोद्धार करवाये जाते हैं तथा नये बनाये जाते हैं। ऐलक
गुप्ति
आचार्यों के लिये गुप्ति मूलगुण है। साधुओं के लिये ध्यान की सिद्धि में सहायक। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
मोह
द्रव्य मोह – नामकर्म के निमित्त से। भाव मोह – नामकर्म के भोगने से। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
समयप्रबद्ध
अनंत परमाणुओं की एक वर्गणा, अनंत वर्गणाओं का एक समयप्रबद्ध। यह सिद्धों का अनंतवाँ भाग तथा अभव्यों से अनंतगुणा होता है। प्रति समय, समयप्रबद्ध आत्मा
मानस्तम्भ
मन्दिरों में मानस्तम्भ जरूरी नहीं। यदि हो तो मन्दिर के मुख्य द्वार से मानस्तम्भ की ऊँचाई की 1½ गुनी दूरी पर हो ताकि भगवान की
परस्पर
“परस्परोपग्रहो जीवानाम्” इस सूत्र में प्राय: “उपग्रह” का अर्थ “उपकार” ही लिया जाता है पर इसमें “अपकार” भी ग्रहण करना चाहिये। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर
प्रश्न / समाधान
समाधान से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रश्न होता है। इससे संवेग-भाव बना रहता है जो मोक्षमार्ग में सहायक होता है। प्रश्न से ही तो गौतम गणधर का
प्रायश्चित
मुनि श्री शांतिसागर जी, आचार्य श्री विद्यासागर जी से प्रायश्चित अकेले में नहीं लेते थे। उनकी सोच थी कि गलती जितने लोगों के सामने की
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