Category: पहला कदम
सल्लेखना
श्री कर्मानंद जी (जैनेतर) जैन धर्म से बहुत प्रभावित थे पर सल्लेखना को आत्मघात मानते थे। थोड़े दिन बाद उन्हें बहुमूत्र रोग हो गया। अशुद्धि
गुरुपास्ति
मुनियों को न मानने वाले, गुरुपास्ति आवश्यक वैसे ही करते हैं जैसे बीरबल खिचड़ी पकाया करते थे। उनकी खिचड़ी कभी पक पायेगी ? मुनि श्री
लब्धियाँ
श्री सम्यक्त्वसार शतक (आचार्य श्री विद्यासागर जी के गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी रचित) में उदाहरण दिया है… मोक्ष जाने वाली ट्रेन में → 1.पटरी…
गणधर के शिष्य
गणधर के शिष्य “गुणधर” (गुणों के धारक)। उत्तम → सम्यक्चारित्र के धारक। मध्यम → सम्यग्दर्शन के धारक। जघन्य → सिर्फ नाम के धारक जैसे आम
भाव
किसी के अधिक से अधिक कितने भाव रह सकते हैं ? सामान्यत: 4 ( औदायिक, पारिणामिक, क्षयोपशमिक, औपशमिक या क्षायिक), लेकिन क्षायिक सम्यग्दृष्टि जब उपशम
आत्मा
निश्चय से आत्मा के अनंत/ अनेक गुणों को जानना, तथा व्यवहार से उन गुणों को जीवन में उतारना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
आत्मा पर विश्वास
आत्मा पर विश्वास सिर्फ यह नहीं कि मैं आत्मा हूँ/ आत्मा होती है, पर यह भी कि आत्मा अजर अमर है। इसका परिणाम होगा कि
लोकांतिक देव
वैसे तो लोकांतिक देव कोई भी मनुष्य बन सकता है। पर आचार्य श्री कुंदकुंद जी के अनुसार ऐसे विशुद्ध भाव मुनि ही रख सकते हैं।
भव्य / भद्र
भव्यपना, अनुभूति में नहीं। भद्रपना (क्रूर का विपरीत) अनुभूति में आता है। कल्याण दोनों के होने पर ही। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र-
जिन दर्शन / पूजा
जिन दर्शन जैनों का लक्षण है। जिन पूजा जैनों का आवश्यक। मुनि श्री सुप्रभसागर जी
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