Category: पहला कदम
एकेंद्रिय
एक इंद्रिय जीवों के लिये भी → वीर्यांतराय + मतिज्ञानावरण के क्षयोपशम + शरीर नामकर्म तथा जाति नामकर्म के उदय लगते हैं। सब में प्रवृत्तियाँ
गति / गत्यानुपूर्वी
जीव के वर्तमान को चलाता है गति नामकर्म। गत्यानुपूर्वी जीव को विग्रह गति में चलाता है। (लेकिन पर्याप्तक होने पर इसका उदय बंद हो जाता
गुणस्थान / लेश्या
गुणस्थान… मोह की न्यूनता / अधिकता होने से भावों में बदलाव। लेश्या… कषाय + योग प्रवृत्ति में न्यूनता/ अधिकता से आत्मा का लेपन। गुणस्थानों के
श्री षटखण्डागम
6 खंडों के नाम – जीवठान छुद्दाबंध बंध स्वामित्व विचय वेदना अनुयोग द्वार वर्गणाखंड महाबंध मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान – 9)
इंद्रियाँ
द्रव्य-इंद्रियों की रचना मुख्यतः नामकर्म (अंगोपांग + शरीर नाम) के उदय से। भाव-इंद्रियों में ज्ञानावरणी कर्म के क्षयोपशम की मुख्य भूमिका। मतिज्ञानावरण + वीर्यांतराय कर्मों
संस्कार
संस्कार दो प्रकार के… 1. पूर्व जन्मों के 2. वर्तमान के पहचानें कैसे ? यदि अपराध, सहजता/ स्वेच्छा से तो पूर्व के संस्कार। परवश/ संगति
ज्ञान की परिणति
आत्मा, इंद्रियाँ तथा मन ज्ञान के साथ चल रहे हैं। ये सब ज्ञानात्मक परिणतियाँ हैं। सबसे ज्यादा परिणति स्पर्शन इंद्रिय से ही होती है क्योंकि
पंच-परावर्तन
चक्रवर्ती भरत के 923 पुत्र तो अनादि से निगोद में ही रहे थे, उनके पंच-परावर्तन कैसे घटित होगा ? पंच-परावर्तन अनंत को दर्शाता है। उनके
पहले संसार फिर मुक्त
शास्त्रों में पहले संसारी, बाद में मुक्त जीवों का वर्णन क्यों ? 1. पहले संसार ही तो होता है फिर मुक्त होते हैं। उल्टा करने
श्रावक के मूलगुण
1. जब नवजात बच्चे को 40वें/ 45वें दिन जैन बनाने मंदिर ले जाते हैं तब मद्य, मांस, मधु तथा 5 उदंबरों = 8 का त्याग
Recent Comments